Book Title: Shakahar Jain Darshan ke Pariprekshya me
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 26
________________ २४ [ शाकाहार वातावरण बनाने में ही लग जाएगा। अतः इस काम को काल की सीमा में बांधना उपयुक्त नहीं है। कुछ सभाएं व भाषणबाजी कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेना भी उपयुक्त नहीं है । आशा है समाज का नेतृवर्ग इसे गंभीरता से लेगा और कुछ दीर्घकालीन योजनाएँ बनाएगा । "समाज क्या करेगा और क्या कर पावेगा " - यह तो भविष्य ही बताएगा; पर हमारा व्यक्तिगत कर्तव्य भी है कि हम स्वयं पूर्णत: शुद्ध शाकाहारी बनें, अपने परिवार को शाकाहारी बनावें; जो भी व्यक्ति आपके सम्पर्क में आते हों, उन्हें शाकाहारी बनाने का प्रयास करें। यह तो सुनिश्चित ही है कि शुद्ध सात्विक सदाचारी जीवन के बिना सुख शान्ति प्राप्त होना तो दूर, सुख शान्ति प्राप्त करने का उपाय समझने की पात्रता भी नहीं पकती । अतः जो आत्मिक शांन्ति प्राप्त करना चाहते हैं, आध्यात्मिक शान्ति प्राप्त करना चाहते हैं; प्रकारान्तर से सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र की प्राप्ति करना चाहते हैं, आत्मानुभूति प्राप्त करना चाहते हैं; उन्हें भी इस ओर पूरा-पूरा ध्यान देना चाहिए, उनका भी जीवन सात्विक होना चाहिए, सदाचारी होना चाहिए। 'यह तो जड़ की क्रिया है' - यह कहकर इसकी उपेक्षा करना उचित नहीं है। लौकिक सुख शान्ति के अभिलाषियों को भी शाकाहारी तो होना ही होगा, अन्यथा उनका जीवन एवं परिकर भी विकृत हुए बिना नहीं रहेगा । अतः यह सुनिश्चित ही है कि लौकिक और पारलौकिक - दोनों ही दृष्टि से शाकाहारी - श्रावकाचारी होना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। सभी भव्यजन शाकाहार और श्रावकाचार को अपने जीवन में अपनाकर सुख-शान्ति प्राप्त करें - इस मंगल भावना के साथ विराम लेता हूँ।

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