Book Title: Shakahar Jain Darshan ke Pariprekshya me
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 25
________________ जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में ] २३ प्रयोग से रोका जा सके। हाँ, यदि हम उन पदार्थों के स्थान पर अन्य अहिंसक पदार्थ उसी कीमत पर या उससे भी कम कीमत पर उपलब्ध करा सकें तो सफलता अवश्य मिल सकती है। इसके लिए उद्योगपतियों को आगे आना होगा। इस लड़ाई को अनेक मोर्चों पर लड़ना होगा। उद्योगपति अहिंसक खाद्य सामग्री एवं श्रृंगार सामग्री तैयार करें, साधु-सन्त एवं प्रभावशाली प्रवक्ता विद्वान इसके लिए समाज का मानस तैयार करें, चिकित्सक लोग भी लोगों को यह बतावें कि स्वास्थ्य के लिए शाकाहार ही श्रेष्ठ आहार है। जितना प्रभाव एक चिकित्सक डाल सकता है, उतना किसी साधु-सन्त या प्रवक्ता विद्वान का नहीं होता है; क्योंकि लोगों को जीवन और स्वास्थ्य की जितनी चिन्ता रहती है, उतनी धर्म-कर्म की नहीं, नैतिकता की भी नहीं । अनुसन्धानकर्ताओं का भी एक कर्तव्य है कि वे भोज्यसामग्री के इसप्रकार के फामूर्ले तैयार करें कि जिनमें खर्च कम हो और स्वास्थ्य के अनुकूल विटामिन आदि सभी पदार्थ उसमें आ जावें । इसप्रकार के फामूल के आधार पर उद्योगपति खाद्य सामग्री तैयार करें, साधु-संत जनमानस तैयार करें, विद्वान लोग साहित्य तैयार करें और कार्यकर्त्ता उसे जन-जन तक पहुँचायें; तब कहीं जाकर कुछ सफलता हाथ लगेगी। यह किसी एक व्यक्ति का काम नहीं है, अपितु सम्पूर्ण समाज का कार्य है। प्रसन्नता की बात है कि सम्पूर्ण समाज ने इस काम को अपने हाथ में लिया है, इसके लिए एक वर्ष का समय सुनिश्चित किया है; पर यह कार्य एक वर्ष में होने वाला नहीं है, इसमें तो जीवन लगाना होगा, तब कहीं कोई सफलता मिलेगी। एक वर्ष में तीन माह तो बात करतेकरते ही निकल गये हैं। इसीलिए तो इसका समय महावीर जयंती १६६१ ई. से महावीर जयंती १९६२ ई. तक निश्चित किया है। यह एक वर्ष तो विचार-विमर्श करने में, योजनायें बनाने में,

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