Book Title: Shakahar Jain Darshan ke Pariprekshya me
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 16
________________ |शाकाहार रहा है। इस प्रचार के शिकार कुछ जैन युवक भी हो रहे हैं। अत: हम सबकी यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि इस संदर्भ में समाज को जागृत करें। शाकाहार तो वनस्पति से उत्पन्न खाद्य को ही कहा जाता है, पर. अंडे न तो अनाज के समान किसी खेत में ही पैदा होते हैं और न सागसब्जी और फलों के समान किसी बेल या वृक्ष पर ही फलते हैं, वे तो स्पष्टतः ही सैनीपंचेन्द्रिय मुर्गियों की संतान हैं। यह तो हम सब जानते ही हैं कि द्वीन्द्विय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों के शरीर का अंश ही मांस है; अत: अंडे से उत्पन्न खाद्य पदार्थों का सेवन स्पष्टरूप से मांसाहार ही है। इस पर कुछ लोग कहते हैं कि दूध भी तो गाय-बकरी के शरीर का ही अंश है; पर दूध और अंडे में जमीन-आसमान का अन्तर है। दूध के निकलने से गाय-बकरी के जीवन को कोई हानि नहीं पहुँचती; जबकि अंडे के सेवन से अंडे में विद्यमान जीव का सर्वनाश ही हो जाता है। यदि दूध देने वाली गाय-बकरी का दूध समय पर न निकले तो उसे तकलीफ होती है। दूध पिलानेवाली माताओं को यदि कारणवश अपने बच्चों को दूध पिलाने का अवसर प्राप्त न हो तो उन्हें बुखार तक आ जाता है, उन्हें अपने हाथ से दूध निकालना पड़ता है। इस पर यदि कोई कहे कि भले ही दूध निकालने से गाय को तकलीफ न होती हो, आराम ही क्यों न मिलता हो; पर उसके दूध पर उसके बछड़े का अधिकार है, आप उसे कैसे ले सकते हैं ? क्या यह गाय और बछड़े के साथ अन्याय नहीं है ? ___हाँ, इसे एक दृष्टि से अन्याय तो कह सकते हैं; पर इसमें वैसी हिंसा तो कदापि नहीं, जैसी कि मांसाहार में होती है। गहराई से विचार करें तो इसे अन्याय कहना भी उचित प्रतीत नहीं होता; क्योंकि गाय का दूध लेने के बदले में गाय और बछड़े के भोजन-पानी, रहने एवं अन्य सभी

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