Book Title: Shakahar Jain Darshan ke Pariprekshya me
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 14
________________ । शाकाहार है, मांसाहारियों के समान नहीं। मनुष्य प्रकृति से शाकाहारी ही है। मनुष्य स्वभाव से दयालु प्रकृति का प्राणी है। यदि उसे स्वयं मार कर मांस खाना पड़े तो १० प्रतिशत लोग भी मांसाहारी नहीं रहेंगे। जो मांस खाते हैं, यदि उन्हें वे बूचड़खाने दिखा दिये जायें, जिनमें निर्दयतापूर्वक पशुओं को काटा जाता है तो वे जीवनभर मांस छुयेंगे भी नहीं। मांस के वृहद उद्योगों ने मांसाहार को बढ़ावा दिया है। यदि टी.वी. पर कत्लखाने के दृश्य दिखाए जावें तो मांस की बिक्री आधी भी न रहे। मांसाहारी पशु दिन में आराम करते हैं और रात में खाना खोजते हैं, शिकार करते हैं; पर शाकाहारी दिन में खाते हैं और रात में आराम करते हैं। जब शाकाहारी पशुओं के भी सहज ही रात्रिभोजन का त्याग होता है तो फिर मनुष्य का रात्रि में भोजन करना कहाँ तक उचित है ? प्रश्न - आजकल तो शाकाहारी पशु भी रात को खाने लगे हैं, हमने अनेक गायों को रात्रि में खाते देखा है। उत्तर- हाँ, खाने लगे हैं, अवश्य खाने लगे हैं; मनुष्यों की संगति में जो पड़ गये हैं। मनुष्यों ने उन्हें भी विकृत कर दिया है। जब किसी पालतू पशु को आप दिन में भोजन दें ही नहीं, रात में ही दें; तो बेचारा क्या करेगा ? किसी वनविहारी स्वतंत्र शाकाहारी पशु को रात्रि में भोजन करते देखा हो तो बताइए? ___ भाई, मनुष्य और शाकाहारी पशु प्रकृति से दिवाहारी ही होते हैं। अत: जैनधर्म का रात्रिभोजन त्याग का उपदेश प्रकृति के अनुकूल एवं पूर्ण वैज्ञानिक है। रात्रिभोजन त्याग के विरुद्ध एक तर्क यह भी प्रस्तुत किया जाता है कि दो भोजनों के बीच जितना अन्तर रहना चाहिए, दिन के भोजन में वह नहीं मिलता। प्रातः ६-१० बजे खाया और शाम को फिर ४-५

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