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| शाकाहार ही न जा सके, पर यदि हम अभी से सावधान नहीं हुए तो कुछ दिनों में हम उस स्थिति में पहुँच जावेंगे कि जब कुछ करना संभव ही न रहेगा। ___ अत: शाकाहारी अंडे के दुष्प्रचार से शाकाहारियों को बचाना हम सबका प्राथमिक कर्तव्य है। कहीं ऐसा न हो कि एक ओर हम छोटीछोटी बातों को लेकर लड़ते-झगड़ते रहें और दूसरी ओर हमारी आगामी पीढ़ियाँ पूर्णत: संस्कारहीन, तत्त्वज्ञानहीन और सदाचारहीन हो जॉय ? यदि ऐसा हुआ तो इतिहास हमें कभी क्षमा नहीं करेगा। ___मद्य और मांस के साथ जैनदर्शन में मधु के त्याग का भी उपदेश दिया गया है। मधु मधुमक्खियों का मल है, उसके विनाश से उत्पन्न होता है और इसमें निरन्तर अंसख्य जीव उत्पन्न होते रहते हैं। अत: यह
भी खाने योग्य नहीं है। __जैनाहार विज्ञान का मूल आधार अहिंसा है। सर्वप्रथम तो हमें ऐसा ही आहार ग्रहण करना चाहिए, जो पूर्णतः अहिंसक हो। यदि पूर्णत: अहिंसक आहार से जीवन संभव न हो या हमसे इसका पालन संभव न हो तो जिसमें कम से कम हिंसा हो - ऐसे आहार से काम चलाना चाहिए। ___ आहार के लिए सैनी पंचेन्द्रिय जीवों के घात का तो सवाल ही नहीं उठता, सभी त्रसजीवों की हिंसा से भी पूरी तरह बचना चाहिए। स्थावर जीवों के विनाश से भी यथासाध्य बचना आवश्यक है। इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही जैनाहार सुनिश्चित किया गया है। ___ सर्वप्रथम तो गेहूँ, चावल आदि अनाज और चना आदि दालों एवं तिलहन आदि के उपयोग का उपदेश दिया गया है; क्योंकि ये पूर्णत: अहिंसक आहार है। स्थावर जीवों में विशेषकर वनस्पतिकायिक जीवों के शरीर का ही आहार में उपयोग होता है। अनाज, तिलहन और दालें तभी उत्पन्न होती हैं, जब उनका पौधा स्वयं अपनी आयु