Book Title: Saraswatimahapoojan
Author(s): Suryodaysuri
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 19
________________ श्री सरस्वतीमहापूजन अरजे विरजे अशुद्धविशोधिनि मां शोधय शोधय स्वाहा ।। (आ मंत्र बोलती वखते एम चितववुं के मारा शरीर अने मननी विशिष्ट शुद्धि थई रही छे.) १८ अमृताभिषेक ( ते पछी नीचेनो मंत्र त्रणवार अथवा सातवार बोलवो) अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय स्रावय स्वाहा || ( आ मंत्र बोलती वखते एम चिंतववुं के मारा मस्तक उपर अमृतनी वर्षा थई रही छे अने हुं मांत्रिकस्नान करी रह्यो छु, आ मंत्र बोलती वखते थोडा थोडा समयना अंतरे बने हाथो वडे अमृतवर्षानी मुद्रा करता रहेवु ) कल्मषदहन (कल्मष एटले पाप, तेनुं दहन करवाने लगती क्रिया ते कल्मषदहन. ते माटे नीचेनो मंत्र बोली बने भुजाओने स्पर्श करवो. आ क्रिया त्रणवार करवी) विद्युत्स्फूलिङ्गे महाविद्ये सर्वकल्मषं दह दह स्वाहा हृदयशुद्धि (हृदयशुद्धि माटे डाबा हाथथी हृदयने स्पर्श करतां नीचेनो मंत्र त्रणवार बोलवो) ॐ विमलाय विमलचित्ताय ज्वीं क्ष्वीं स्वाहा ।। पंचबीजनी धारणा ( डाबा हाथवडे स्पर्श करता नीचे प्रमाणे पंचबीजनी धारणा करवी) हृदये- ह्राँ, कण्ठे- ह्रीँ, तालव्ये - हूँ, ललाटे - ह्रौं, शिखायां - ह्रः । दिग्बन्धन ( जमणा हाथमां पाणी लई नीचेना मंत्रो बोलवापूर्वक ते ते दिशामां छांटतां दिग्बन्धननी क्रिया थाय छे.) पूर्व दिशामां- क्षाँ, दक्षिण दिशामां र्क्षी, पश्चिम दिशामां - क्षू, उत्तर दिशामां - क्ष, उर्ध्व दिशामां क्षः । अंगुलीन्यास ( ते पछी नीचे मुजब बीजाक्षरो ऋण त्रणवार बोली डाबा हाथनी अनामिका आंगलीवडे जमणा हाथनी आंगलीओ उपर मंत्राक्षरो स्थापन करवा. पहेलो बीजाक्षर कनिष्ठिका आंगली उपर अने ते पछी अनुक्रमे अंगूठा सुधी आ क्रिया करवी) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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