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श्री सरस्वतीमहापूजन
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त्यार बाद नीचेनो मंत्र बोलवापूर्वक श्रीसरस्वतीदेवीनी प्रतिमाने श्वेत चूंदडी चडाववी. में ही श्री सरस्वत्यै वस्त्रं परिधापयामि स्वाहा ।
आभरणपूजा रजत-सुवर्णविनिर्मित-मणिमण्डितभूषणैश्च षोडशभिः | मातर्भारति ! तुभ्यं, समलंकुर्मो वयं भक्त्या ।।१०।। त्यार बाद नीचेनो मंत्र बोलवापूर्वक श्रीसरस्वतीदेवीनी प्रतिमाने षोडश आभरण चडाववां. ॐ मा श्री सरस्वत्यै षोडश आभरणानि परिधापयामि स्वाहा ।
ध्यानम् अर्हन्मुखकजवासिनि ! मोहविनाशिनि ! गुणौघलासिनि ! हे ! श्रीशारदे ! सदा त्वां, ध्यायाम्यज्ञाननाशार्थम् ।।११।। भानूदये तिमिरमेति यथा विनाशं,
क्ष्वेडं विनश्यति यथा गरुडागमेन । तद्वत् समस्तदुरितं चिरसंचितं मे,
देवि ! त्वदीयमुखदर्पणदर्शनेन ।।१२।। (अरिहंतपरमात्माना मुखरूपी कमलमां वसनारी, मोहनो नाश करनारी, गुणोना समूहथी प्रसन्न हे शारदा ! हे सरस्वती देवी ! अज्ञानना नाश माटे हमेशां हुं तारु ध्यान करूं छु. जेम सूर्यनो उदय थतां अंधकारनो नाश थाय छे तथा गरुडनु आगमन थतां सर्पनुं झेर दूर थइ जाय छे तेम हे सरस्वती देवी ! तारा मुखरूपी दर्पणनां दर्शन थतां ज मारा घणा कालनां एकत्र थयेलां सघलां पापकर्मो दूर थइ जाय छे.) अहीं दरेकनी पासे ऐं नमः मन्त्रनी एक माला गणाववी.
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