Book Title: Sanskrutik Avdan
Author(s): Bhagchandra Jain
Publisher: Z_Bharatiya_Sanskruti_me_Jain_Dharma_ka_Aavdan_002591.pdf

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Page 14
________________ ____ चारित्रिक विशुद्धि की आधारशिला वस्तुत: परिवार है और परिवार का धर्म है गृहस्थ धर्म है जिसे जैन संस्कृति में श्रावक या उपासक धर्म कहा जाता है। वह साधु सन्तों से उपदेश सुनकर साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ाता है। पारिवारिक, राष्ट्रिय और अन्तर्राष्टिय शान्ति की स्थापना का भी उत्तरदायित्व श्रावक के सबल कन्धों पर होता है। इसलिए श्रावक का जीवन सदाचारमय होना चाहिए। सामाजिक कर्त्तव्य भी उसके साथ जुड़ा हुआ है। आचार्य हरिभद्रसूरि, जिनमण्डनगणि, पण्डित आशाधर आदि चिन्तकों ने श्रावक के गुणों की एक लम्बी सूची दी है जिसमें सत्संग, सुश्रूषा, करुणा, सत्कार, कृतज्ञता, परोपकार आदि गुण उल्लेखनीय हैं। इन गुणों में भी न्यायपूर्वक धन कमाना, शाकाहारी वृत्ति रखना और करुणाशील होना श्रावक की पहचान कही जा सकती है। न्यायोपात्तधनो यजत्गुणगुरून् सद्गीत्रिवर्ग भजन् नन्योन्यानुगुणं तदर्हगृहिणो-स्थानालयो हीमयः। युक्ताहारविहारआर्य-समितिः प्राज्ञःकृतज्ञो वशी शृण्वन् धर्मविधि दयालु धर्मीः सागारधर्म चरेत्।। सागारधर्मामृत १.११, धर्मविन्दु, ३-५ (६) अनेकान्तवाद मानवीय एकता, सह अस्तित्व, समानता और सर्वोदयता धर्म के तात्त्विक अंग है। तथाकथित धार्मिक विज्ञान और आचार्य इन अंगों को तोड़-मरोड़कर स्वार्थवश वर्गभेद और वर्णभेद जैसी विचित्र धारणाओं की विषैली आग को पैदा कर देते हैं जिसमें समाज की भेड़ियाधसान वाली वृत्ति वैचारिक धरातल से असम्बद्ध होकर कूद पड़ती है। उसके सारे समीकरण झुलस जाते हैं। दृष्टि में हिंसक व्यवहार अपने पूरे शक्तिशाली स्वर में गूंजने लगता है, शोषण की मनोवृत्ति सहानुभूति और सामाजिकता की भावना को दृषित कर देती है, वैयक्तिक और सामूहिक शान्ति का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। इस दुर्व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी एकान्तवादी चिन्तकों के सबल हिंसक कन्धों पर है जिसने समाज को एक भटकाव दिया है, अशान्ति का एक आकार-प्राकार खड़ा किया है और पड़ोसी को पड़ोसी जैसा रहने में संकोच, वितृष्णा और मर्यादाहीन भरे व्यवहारों की लौहिक दीवाल को गढ़ दिया है। अनेकान्तवाद और सर्वोदय दर्शन इन सभी प्रकार की विषमताओं से Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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