Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03 Author(s): Yudhishthir Mimansak Publisher: Yudhishthir Mimansak View full book textPage 8
________________ भूमिका [ प्रथम संस्करण] 1 सं० २००७ में 'संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास' ग्रन्थ का प्रथम भाग छपा था । उसके लगभग १२ वर्ष पीछे सं० २०१६ में द्वितीय भाग का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ । सं २०२० में जब प्रथम भाग का द्वितीय संस्करण छपा, तो उस समय इस ग्रन्थ से सम्बद्ध अवशिष्ट विषयों की पूर्ति के लिए तृतीय भाग की आवश्यकता का अनुभव हुआ। तृतीय भाग में दी जाने वाली सामग्री की उसमें संक्षिप्त सूची भी प्रकाशित की, परन्तु विविध कार्यों में व्यासक्त होने तथा आर्थिक परिस्थिति के कारण इतने सुदीर्घ काल में भी मैं तृतीय भाग का प्रकाशन न कर सका । उक्त कमी को अब दस वर्ष पश्चात् पूरा किया जा रहा है । व्याकरण - शास्त्र के इतिहास का विषय दो भागों में पूर्ण हो गया । इस भाग में व्याकरण - शास्त्र के इतिहास में यत्र तत्र निर्दिष्ट २-३ दुर्लभ लघु ग्रन्थ, पाणिनीय व्याकरण की वैज्ञानिक व्याख्या नागोजि भट्ट तथा अनन्त शर्मा पर्यालोचित अष्टाध्यायी का सूत्रपाठ ( दुलभ हस्तलेख ), अष्टाध्यायी के पाठान्तर प्रादि का निर्देश प्रमुख रूप से किया हैं । दोनों भागों के नवीन संस्करणों में यत्र-तत्र पूर्व प्रकाशन के पश्चात् उपलब्ध सामग्री का यथास्थान निर्देश कर दिया था । पुनरपि शोधकार्य कभी पूर्ण नहीं होता । नित्य नई सामग्री उपलब्ध होती. रहती है । प्रतः दोनों भागों के नवीन संस्करण के पश्चात् नूतन उपलब्ध सामग्री का 'संशोधन, परिवर्तन, परिवर्धन' परिशिष्ट में सन्निवेश किया है । इसी प्रकार हमने अपने ग्रन्थ में सर्वत्र भर्तृहरि विरचित महाभाष्यदीपिका के जहां भी उद्धरण दिये हैं, वहां हमने अपने हस्तलेख की पृष्ठ संख्या दी थी, क्योंकि उस समय उक्त ग्रन्थ छपा नहीं था । महाभाष्यदीपिका का मुद्रण हो जाने के पश्चात् यहPage Navigation
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