Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 6
________________ ७-शब्देन्दुशेखरव्याख्या-श्री म० म० सुब्वरायाचार्य ८-शेखरद्वय (लघु-बृहत् ) व्याख्या- श्री पं० पद्मनाभाचार्य 8-लघुशेखरव्याख्या-एलमेलि विट्ठलाचार्य । इनके अतिरिक्त श्री पं० गुरुपद हालदार कृत 'व्याकरण दर्शनेर इतिहास' ग्रन्थ का निर्देश भी होना चाहिये । जैसे नारायण भट्ट का 'अपाणिनीय-प्रमाणता' ग्रन्थ है, उसी प्रकार के दो ग्रन्थ और हैं-१. मखभूषण, २. पार्षप्रयोगसाधत्वनिरूपण। ये दोनों ग्रन्थ 'प्राडियर लायब्रेरी बुलेटिन' के भाग ३७ (सन् १९७३) तथा भाग ४२ ( सन् ? ) में छपे हैं । इनका निर्देश वा प्रकाशन भी होना चाहिये। इस जीवन में यदि 'संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास' का पुर्नमुद्रण होगा तो इस न्यूनता को भी पूरा करने का प्रयत्न करूंगा। ___ यद्यपि इस जीवन में (चिरकाल से अस्वस्थ रहने के कारण) नये संस्करण के प्रकाशित होने की आशा तो नहीं है, पुनरपि प्रयत्न करूंगा कि जीवन पर्यन्त नये ज्ञात तथ्यों का यथास्थान संकलन और भूलों का परिमार्जन करता जाऊं, जिससे मेरे पश्चात् निकलने वाला संस्करण प्रस्तुत संस्करण से कुछ परिमार्जित एव परिवर्धित हो सके। निवेदन-कार्य की व्यस्तता और अस्वस्थता के कारण इस ग्रन्थ के प्रस्तुत संस्करण में हुई कुछ भूलों वा स्खलनों के लिये मैं पाठकों से क्षमा चाहता हूं और पाठकों से निवेदन करना चाहता हूं कि प्रथम द्वितीय भाग के संबन्ध में तृतीय भाग के दसवें परिशिष्ट में जो संशोधन परिवर्तन परिवर्धन दर्शाये हैं, उन को यथास्थान जोड़कर पढ़ने की कृपा करें। विशेष कर प्रथम भाग, पृष्ठ १३४, तथा द्वितीय भाग, पृष्ठ २०७ पर शस्तन नाम के स्थान में शान्तनव शोध कर पढ़ें । इस संशोधन के लिये द्वितीय भाग में 'फिट-सूत्र-प्रवक्ता पौर व्याख्याता नामक २७ वें अध्याय में पृष्ठ ३४६-३४६ देखें। वहां इसका स्पष्टीकरण किया है। इस बार व्यक्ति-नामों और ग्रन्थनामों की सूचियों में समान नाम

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