Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 10
________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास हताय माग तृतीय भाग की विषय-सूची परिशिष्ट विषय पृष्ठ १-प्रपाणिनीय-प्रमाणता (नारायणभट्ट-कृत) २-पाणिनीय व्याकरण की वैज्ञानिक व्याख्या का निदर्शन १५ व्याकरणविषयक दो सिद्धान्त पृष्ठ १५ । वैयाकरणों की कठिनाई १६ । व्याकरणशास्त्र के अर्वाचीन व्याख्याता १७ । व्याकरणशास्त्र का मुख्य आधार १८, कलौ पाराशरी स्मता १६, यथोत्तरमुनीनां प्रामाण्यम् १६, प्राचीन मतों का संग्रह १६ । पाणिनीय सूत्रों की भाषाविज्ञानिक व्याख्या २० । प्रस्तुत व्याख्या का आधार २१, प्रकृत्यन्तर सद्भाव की कल्पना-मागम संयूक्त धात्वन्तर २३, आदेशरूप धात्वन्तर २४, वर्णविकार से निष्पन्न धात्वन्तर २४, वर्णविपर्ययरूप धात्वन्तर २१, प्रातिपदिकरूप प्रकृत्यन्तर २६, 'मनोतिावश्यतो षुक च' सूत्र और उसकी वैज्ञानिक व्याख्या २७. मनुष प्रकृत्यन्त र कल्पना का लाभ २७, सुगागमयुक्त सान्त प्रकृति २८, 'कन्यायाः कनीन च' सूत्र और उसकी वैज्ञानिक व्याख्या २६, कनीना प्रकृति कल्पना का लाभ ३०, तवक ममक प्रकृत्यन्तर ३०, 'हग्रहोर्भश्न्द सि हस्य' वार्तिक और वैज्ञानिक व्याख्या ३०, 'राजाहःसखिभ्यष्टच' सूत्र और वैज्ञानिक व्याख्या ३१, वैज्ञानिक व्याख्या का लाभ ३२, प्रकारान्त राज और अह शब्द ३२, 'विभाषा समासान्तो भवति' वचन पर विचार ३३, 'ऊधसोऽनङ्ग' सूत्र और प्रकृत्यन्तर कल्पना ३३, निषेधार्थक न अ अन तीन स्वतन्त्र अव्यय ३३ । प्रत्ययान्तर सद्भाव की कल्पना ३४, गणकार्य का उपलक्षणत्व ३५, लोक में एक से अधिक विकरणों का सह प्रयोग ३६, धातुगत अनुबन्धों की प्रायिकता ३७ । पाणिनीय प्रयोग द्वारा नियमान्तर की कल्पना ३ । विभक्ति नियम ३६ । समानवाक्य में वैकल्पिक विभक्तियों का सहभाव ४०,

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