Book Title: Sanskrit Padyanam Akaradikramen Anukramanika 03 Author(s): Vinayrakshitvijay Publisher: Shastra Sandesh MalaPage 64
________________ उपवासद्वयं कृत्वा गौतम उल्कापातादयः सर्वेऽमीषु उपवासद्वयं कृत्वा गौतमं (आ.उ.) २३९ उपाधिभेदजं भेदं वेत्त्यज्ञः (अ.सा.) १८।१७ उभयासिद्धो यथा-परिणामी (प्र.त.) ६५० उपवासश्चतुर्दश्यां,. (गु.प्र.) १३१ उपाधिभेदोपहितं (अ.द्वा.) २४ उभयैकस्वभावत्वेन (द्वा.द्वा.) २५।१० उपवासश्चौपवस्त्रं, व्रतं. (शा.ना.) ३२२ उपाधिमात्रध्वंसो (प्र.मी.) २।३।१७ उभयोः कर्मणोन्यादेः (वा.प्र.) ६३ उपवासिनाऽखिलोपधि- (य.कृ.) ३२८ उपाध्यायपदादीनामप्यनु- (ध.सं) १४१ उभयोः परिणामित्वं (यो.बि) ३१० उपवासेन यः शुक्लामारा- (आ.उ.) २२६ । उपाध्यायमुपासीत, तदनु- (वि.वि.) ८।१२३ उभयोः सौम्यतां प्राप्ते (भु.दी.) ९३ उपवासोऽवमौदर्य (त.अ) ११६ उपाध्यायोऽध्यापकञ्चो- (शा.ना.) ३०५ उभयोः स्थानके शून्य (त्रै.प्र.) १११७ उपवाह्याश्च सन्नाह्याः प्राक् (प्र.चि.) २१७३ उपाध्यायो निरुक्तोऽसौ, (उ.क.) १७१ उभयोर्ग्रहणाभावे (शा.वा) ४।९४ उपविशति गुरुसमीपे, (मा.प.) २८२ उपानत्सहितो व्यग्र-चित्तः (वि.वि.) ३३३ उभयोस्तत्त्वनिर्णिनीषुत्वे (प्र.त.) ८२३ उपविश्य च पूर्वाशाभिमुखो (आ.उ.) १७ उपानद्वाहनच्छत्रशस्त्रच्छाया- (यो.शा.) ६४२ उभयोस्तत्स्वभावत्वभेदे (द्वा.द्वा.) १६६ उपविष्टस्य देवस्यो-वस्य (वि.वि.) १।१२८ उपानहां पादुकानां, (स्व.प्र.) ३।११ उभयोस्तत्स्वभावत्वात्तदा- (यो.बि) १०५ उपवीतं यज्ञसूत्रं प्रोद्धृते (अभि.) ३५०९ उपान्त्यं सर्वतोभद्रमन्त्यं (आ.सि.) १०१ उभयोस्तत्स्वभावत्वे (द्वा.द्वा.) १७।१९ उपशमरसमनुशीलय मनसा, (शा.सु.) ८७ उपाय: कालकूटस्य (उ.प्र.) १२७ उभयोस्तत्स्वभावत्वे (यो.बि) ३२९ उपशमरसैमिश्रे शुभ्रे (उ.श.) ९१ उपायः समतैवैका मुक्तेरन्यः (अ.सा.) ९।२७ उभानुभयपक्षस्तु (प्र.ल.) २९ उपशान्तक्षीणकषाययोश्च (तत्त्वा) ९।३८ उपायत्वेऽत्र पूर्वेषामन्त्य (द्वा.द्वा.) १८।३१ उभे च सत्वचैतन्ये (जै.मु.) २२६ उपशान्त क्षीणमोहे (प्रकृ.) ४ उपायानां लक्षैः कथमपि (शा.सु.) १५/२ उमा गौर्यां हरिद्रायां, (अ.सं.) २।३०९ उपशान्तजिनाः स्तोका (सू.सं.) १४० उपायान्तरमप्रेक्ष्य प्रत्यु- (प्र.चि.) ५/६३ उमानाथे प्रतिकूले, (अ.सं.) २१३२९ उपशान्तश्च ६ वात्सल्ययुक्तः (ध.सं) ८१ उपायिनि प्रवीणे च, (अ.सं.) २१३६८ उमाया इव मायायाः, (क.प्र.) ४५ उपशान्तादिमोहाख्ये उपाये गेहादिमुखे निर्वाणे (अ.सं.) ४८१ उरः शिरो ललाटं च (सा.शा.) ११० उपशामिकमेकं च (हिं.प्र.) १३८ उपायेऽनुगमे मेढ़े (अ.सं.) ३।४२६ उरभ्रकाकिण्युदबिन्दु- (उप.) ३५२ उपसंस्पर्शः, पाठे तु (श.र.) ३।३०६ उपायोपगमे चास्या (यो.बि) ४१० उरभ्रकाकिण्युदबिन्दुकाम्र- (अ.क.) १३७ उपसम्पच्चेति जिनैः, (ध.सं) १०५ उपार्जयति तत् कश्चिद् (सू.मा.) २५ उररीकृतमप्यूरी-कृत- (ध.ना.) १९७ उपसम्पच्चेति दशविधा (य.कृ.) ३८५ उपाय॑ क्लेशतः स्वर्ण- (प्र.चि.) ७/१६२ उरस्वान् स्यादुरसिलोऽ- (श.र.) ३।२८६ उपसर्गप्रसङ्गेऽपि, कायो- (यो.शा.) ४३ उपार्हद्गमने भूत्वाऽ- (प्र.चि.) ५।३७८ उराहस्तु मनाक्पाण्डुः (अभि.) ४।३०६ उपसर्गाः क्षयं यान्ति, (उ.त.) ८८ उपालिङ्गं रिष्टा-ऽरिष्टे (श.र.) २२६ उरुक्रमोरुगायौ च तमो- (अ.चि) २०६३ उपसर्गाद्विपर्यस्येत्, (वा.प्र.) ५८ उपासकान्तकृदनुत्तरोप- (अभि.) २०१५८ उरुवूको हस्तिकर्णः, (नि.शे.) १५३ उपसर्गाश्च ते घोरा (उ.प्र.) ३६९ उपासनानां फलद९८ (सि.स.) १।१५ उरू चोदरम्पृष्ठं च (सा.शा.) ३१७ उपसर्गे सुधीरत्वं सुभीरुत्व-(योग.) १२२ उपासना भागवती सर्वे- (अ.सा.) १५/६० उरूस्तनौ करिकप्रतिमा- (सा.शा.) ३१८१ उपस्थितेऽथ तस्मिंस्तु, (ध.सं) १४७ उपासाञ्चक्रिरेतं च (प्र.चि.) ७३८२ उरो वक्षसि मुख्ये (अ.सं.) १५६३ उपस्थितोऽपि प्रत्यूहो (धर्मो.) ४४।। उपास्ते ज्ञानवान् देवं (अ.सा.) १५/६२ उरोविशालो धनधान्य- (सा.शा.) १११३ उपस्पर्शस्त्वाचमन- . (अ.सं.) ४.३१२ उपास्यात्मानमेवात्मा, (स.श) ९८ उर्व मेरोः शिरसि (ध.उ.) २१ उपाग्राह्यं ढौकनिका, (शा.ना.) ३११ उपेक्षते हि नापन्नमितरोपि (प्र.चि.) ३।२०७ उद्ध्वरेखा चतसृष्वङ्गलीषु (ह.सं.) ३५३ उपाङ्गमथवाङ्गं स्या-द्यदीयं (वि.वि.) ५।११९ उपेक्षमाणोऽप्युपकृत्य (शं.पा.१)५५ उर्ध्वलोकादधोलोको- (श्री.त.) १६९ उपात्, जायापत्योस्तु (श.र.) ३।१२२ उपेक्षा फलमाद्यस्य (आ.मी) १०२ उर्ध्वलोके स्थितं ज्ञान- (श्री.त.) ६।१९ उपादानं चेतनायाः, जीवो- (श्री.त.) १६।१५ उपेक्षाभावनाञ्जिह्वे (उ.प्र.) १६९ उर्वी गुर्वी तदनु जलदः (उ.सा.) ५८ उपादानबुद्ध्यादिना (प्र.त.) ६७ उपेक्ष्यपक्षे निक्षेप्यस्तदसौ (प्र.चि.) ७/१२ उर्वै तुः थुर्वै दुर्वै (क.क.) १२१ उपादानादित्रितयं कारणं (स्या.मु.) ३८ उपेय-तत्त्वाऽनभिलाप्यता- (युक्ति) २८ उपेय-तत्त्वाऽनभिलाप्यता- (युक्ति) २८ उलन्दो जयतः कालो उलन्दा ज (अ.चि) २४५ उपादानादिभेदेन न (शा.वा) ४.७८ उपोढ ऊढे निकटेऽप्युदूढः (अ.सं.) ३।१७८ उलपू वल्वजो बालकेशी (नि.शे.) ३६९ उपादेयधियाऽत्यन्तं (यो.दृ) २५ उप्तः स्याद् यदि पुण्यभाजि (ऋ.श.) ९० उलूक: शुकतां काको, (उ.क.) २८४ उपादेयमुपादातुं (प्र.प्र.) ३ उप्ता अंसशरावयोः सुभगयोः (ऋ.श.) ६९ उलूककाकमार्जार- (यो.शा.) २३८ उपादेयविशेषस्य न (शा.वा) ८२६ उप्तैः प्रभाते परिपाक- (आ.म.) ३२२५ उलूककाकमार्जारगृध्र- (आ.उ.) १७८ उपादेयश्च संसारे धर्म (शा.वा) १११ उप्यते यादृशं धान्यं, (आ.श.) ९६ उलूके स्त्रीजिते दम्भे (अ.सं.) ४७ उपाधिः कर्मणैव स्यादा- (द्वा.द्वा.) १०।३० उभयास्तूभयेयुः (अ.चि.) ६६ उलूखलं च खलकं (श..) ४१६१ उपाधिकर्मजो नास्ति (अ.सा.) १८०१८ उभयपदाव्यभिचारो, (मा.प.) ३१७ उलूपी शिशुके प्रोष्ठी (अभि.) ४।४१२ उपाधिजनिता भावा, (प.प) १८ उभयमुखे द्वे राशी (य.कृ.) ३०३ उल्कापातादयः सर्वेऽमीषु (त्रै.प्र.) ११२९ ૪૫Page Navigation
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