Book Title: Sanskrit Padyanam Akaradikramen Anukramanika 03
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

Previous | Next

Page 238
________________ ये केशा लसिताः सरो ये शुभाध्यवसायाख्या ये केशा लसिताः सरो- (शृ.वै.) २ येन प्राहरिकेणेव रुद्धोऽ (प्र.चि.) ७४३१ ये पाण्डवाः संयुगताण्डवेन (प्र.चि.) ७।२९८ ये कौटिल्यकलाकलाप- (क.प्र.) ४४ ।। ये नमो अरिहन्ताणं, (न.मा.) १६८ ये पालिता वृद्धिमिताः (अ.क.) १४५ ये क्षणक्षयिणो भावान् (प्र.चि.) ४।१०५ येन येन प्रकारेण (दा.प्र.) ३४६ येऽपि प्रकामं प्रतिजानते- (शं.पा.२) २५ ये गृहेऽलिन्दनियूह- (आ.सि.) ३१९ येन येन य इहाश्रवरोधः, (शा.सु.) ८१ येपि विच्छिन्नमूलत्वाद्ध- (प्र.ल.) २६० ये चक्रिरे मलयजस्य (सु.अ.) १३ येन येन हि भावेन, (षड्.) १०८ ये प्राज्यसाम्राज्यमुखां (सूक्त.२) ५६ ये चक्रुः कुरकर्माणः, (यो.शा.) ९३ येन येन हि भावेन युज्यते (ध्या.) १६६ ये प्राणिनः कर्मगुरुत्व- (सूक्त.२) १९ ये चान्येऽपि पदार्था, (आत्मा) ३२ येन येन हि भावेन युज्यते (यो.शा.) ८६६ ये प्राप्ताः परमं पदं (यो.शा.) ७६५ ये जानन्ति ग्रहान् सर्वान् (त्रै.प्र.) ५७० येन येन ह्युपायेन, (यो.शा.) ४०७ ये बाला ये च तरुणाः (प्र.चि.) ५।१७६ ये जानन्ति विचित्रशास्त्र- (द्वाद.) १० ये नराः क्रोधसन्दग्धा, (ध.क.) १९८ येऽब्धि चुलुकसात् (उ.क.) ४२० ये जिनपतिभालतले (दा.प्र.) ४४० येन विराजितमिदमतिपुण्यं, (शा.सु.) ६१३ ये भक्षयन्ति पिशितं, (यो.शा.) १९९ ये तामध्यासते लोकास्ते (प्र.चि.) ४१६ येन श्रीप्रभुसोमसुन्दरगु- (आ.सि.) ४२५ ये भक्षयन्त्यन्यपलं, स्व- (यो.शा.) १९४ ये तीर्थकृत्प्रणीता, (प्र.र.) १२ येन सङ्घीयते कर्म (त.अ) १४१ ये भग्ना भवदु:खेभ्यो, (उ.क.) ३६१ ये तु दानं प्रशंसन्तीत्यादि (अष्ट.) २१५ येन समग्रा सिद्धिर्दिव्य- (भा.श.) ९० ये मया स्थापिता दुःखे (आरा.) १८ ये तु दानं प्रशंसन्तीत्यादि- (द्वा.द्वा.) ११३ येन सहाश्रयसेऽतिवि- (शा.सु.) ५७ ये महत्त्वाधिका राज्ये (प्र.चि.) ५।१०४ ये तु दिक्पटदेशीयाः (अ.सा.) १८५८७ येन स्यान्निह्रवादीनां (अ.सा.) १२।५० ये मीमांसाहता लोके, (श्री.त.) ३६।१७ ये तु स्वकर्मदोषेण (द्वा.द्वा.) ३३२१ येनांशेनात्मनो योगस्ते- (अ.सा.) १८।१४८ येयं मन स्वसा दुष्टा (प्र.चि.) ३५७ ये तु स्वभावान्निगदन्ति (जै.त.) ५०० येनाकारेण भेदः किं (शा.वा) ७४० येयं वधूरवसिता हृदये (शृ.वै.) ३२ ये तेषु केचिद् व्यवहार- (जै.त.) १८५ येनाचारेण यावत्स्याद्, (श्री.त.) २०१३ येयं सुबुद्धिभूः कन्या (प्र.चि.) ३।१४९ ये त्वनुभवाविनिश्चितमार्गा- (अ.सा.) २०३५ येनाज्ञा यावदाराद्धा स (योग.) ३४ ये यान्न मुक्तिभाजो (स्त्री.प्र.) ३२ ये त्वया स्थापिता दुःखे, (ष.आ.) ८ येनात्मनः स्यादानन्दः, (श्री.त.) ११७ येयायायाययेयाय नाना- (जिन.) १४ ये त्वय्यतिरतास्ते स्युगिरि- (प्र.चि.) ७५८ येनात्मनानुभूयेऽहमात्म- (स.श) २३ ये यावन्तो ध्वस्तबन्धा (अ.बि) १९ येऽथ कापालिका लोके (प्र.चि.) ४।११९ येनात्मात्मन्यवस्थाता (श्री.त.) १२१२ ये योगिनां कुले जातास्त- (यो.दृ) २१० येऽदयाः क्रूरकर्माणः (प्र.चि.) ६२६५ येनात्माबुध्यतात्मैव, (स.श) १ ये योगिनां कुले जातास्त- (द्वा.द्वा.) १९।२१ ये दयारहिता दाण्डा- (प्र.चि.) ४।४०७ येनाऽत्र जन्मे व्रतमुग्र- (जै.त.) २७८ ये योगिनो द्रव्यपरि- (जै.त.) ४७९ ये दिव्यरूपा मुनयः, (श्री.त.) १९।१६ येनानङ्गीकृतं स्वं प्रणयि- (जै.वि.) ९७ ये योगिनो निर्मलदिव्य- (जै.त.) १०६ ये दृक्पथे तव पतन्ति । (शृ.वै.) २४ । येनान्तसमये पुण्यान- (श्रा.कृ.) ४३ । ये यौवने शीलधरा (उ.त.) ३ ये देवं स्नपयन्ति . (उ.त.) ९१ येनान्धीकृतमानसो (सं.क.) ४ येऽर्हन् ! प्रभातसमये (प्रा.जि.) १ ये देवं स्नपयन्ति शाम्यति- (उ.सा.) ४९ येनापि भावेन खगस्य (भा.स.) ६१ ये लुब्धचिता विषयार्थ- (ह.प्र.) २० ये देवा ये पुमांसश्च, (हि.प्र.) १७१ ये नाम परपर्यायाः स्वा- (अ.सा.) ६२५ ये लेखयन्ति जिनशासन- (उ.त.) ४० ये द्वादशात्मसोदर्या, . (श्रा.कृ.) १८७ येनारुन्धि सुकीर्तिलोपन- (त.बो) १२३ ये लेखयन्ति सकलं (दा.प्र.) ५९४ ये द्वे अस्य प्रिये ते (प्र.चि.) ७।३५० येनाशायै ददे स्वाम्यं, (यो.शा.) ॥२२८ ये वदन्ति दयाधर्म, (आ.श.) ३७ ये धर्मसमये मूढाः, (उ.क.) ६३ येनासङ्ख्यातकेनात्र, (सं.अ.) ४ ये वाचा ख्यान्ति वैराग्यं, (आ.शा.) ७ ये धर्मलीना मुनयः (पर.) ११ ये निःस्पृहास्त्यक्तसमस्त- (ह.प्र.) २२ ये वासरं परित्यज्य, (यो.शा.) २३६ येन कर्म कृतं तस्मिन् (प्र.चि.) ४।१०७ ये नित्यं प्राणिरक्षाप्रणि- (दा.प्र.) ६५८ ये विदधन्त्युपतापं, (आत्मा) ४३ येन कृतानि पुण्यानि (उ.प्र.) २०८ येऽनिशं समतामुद्रां, (साम्य.) १२ ये विरक्ता भवाम्भोधे- (श्रा.कृ.) १० येन केन प्रकारेण (योग.) ७३ ये नीरं विपिबन्ति (क.प्र.) ११४ ये विश्वासपदं च ये (क.प्र.) ५९ येन केनाप्युपायेन (प्र.चि.) ३३१८१ येनेह क्षणभङ्गरेण (प.श.) ४१ येऽवैक्ष्यन्त त्वया क्षीणाः (प्र.चि.) ७३७१ येन क्षुदादयः खलु, (मा.प.) ८२ येनैव तपसा प्राणी, मुच्यते (साम्य.) ९१ ये वैनेया विनयनिपुणैस्ते (लो.नि.) १७ येन ग्रहेण लग्नस्य शुभत्वं (त्रै.प्र.) ८०१ येनैवाराधितो भावात् (योग.) २० ये वैष्णवाः केचन (जै.त.) ४८७ येन तीव्र तपस्तप्तं, (ध.क.) २६२ येनोत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं (ष.स.) ५७ ये व्यापारपरायणाः (क.प्र.) ५८ येन ते जनितं दुःखं (त.अ) १३९ येनोपायेन वायुः प्रविशति (वै.श.) ९९ ये शीलं परिशीलयन्ति (क.प्र.) १३ येन त्रिषष्टिलक्षाभि- . (उ.स.) ४८ येऽन्ये गृहस्थाः खलु (जै.त.) ३७८ ये शुद्धबोधशशिखण्डन- (शृ.वै.) ३ येन दोषा निरुध्यन्ते (ए.द्वा.) २०१६ ये पञ्चभिस्तत्कृतभाग्यनोदा (जै.त.) ४३४ ये शुभाध्यवसायाख्याः (प्र.चि.) ६।२४५ येन धर्मेण धर्मस्य, (जै.मु.) ११२ ये पर्यायेषु निरतास्ते (अ.उ.) २२२६ ये शुभाध्यवसायाख्या (प्र.चि.) ५।१२६ ૨૧૯

Loading...

Page Navigation
1 ... 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474