Book Title: Sanskrit Padyanam Akaradikramen Anukramanika 03
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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(आना
मन्दः क्रोडो नीलवासाः
मर्मस्पृङ्मर्मवाचा मन्दः कोडो नीलवासाः (अभि.) २।३५ ममतान्धो हि यन्नास्ति (अ.सा.) ८/१२ मयूखकिरणौ भानु- (शा.ना.) ७१ मन्दन्यासपदा पूर्णदोह- (प्र.चि.) २५१ ममत्वं माम ! भावेषु, (साम्य.) ७८ मयूखाः किरणा ज्ञेया (अ.नि.) १७ मन्दमतीस्तु व्युत्पादयितुं (प्र.त.) ३।४२ मम त्वद्दर्शनोद्भूताश्चिरं (वीत.) २०१४ मयूरकस्त्वपामार्गे मयूरकं (अ.सं.) ४।२७ मन्दम्मन्दं क्षपयति (त.बो) १५ ममत्वपळू निःशङ्क, (साम्य.) २२ मयूरचटक: शौण्डो (अ.चि) ४२६
(त्रै.प्र.) १०३९ ममत्वमात्रेण मनःप्रसाद- (अ.क.) ४९ मयूरी ज्ञानदृष्टिश्चेत्, (ज्ञान.) १७५ मन्दर्भतः प्रथम १ वेद (आ.सि.) १३४ ममत्ववासना नित्य-सुख- (साम्य.) १३ मयूरीव रमा रम्या (उ.प्र.) ६४ मन्दस्तुन्दपरिमृजोऽनुष्णो (अभि.) ३।४८ ममत्वविषमूल-मान्तरं (साम्य.) १६ मयूरो बहिणः केकी, (ध.ना.) १२७ मन्दस्य ज्ञसितौ मित्रे (आ.सि.) १२२ ममत्वाज्जायते लोभो (त.अ) २३५ मयेदमभ्यूहितमित्यदोषलं (ए.द्वा.) ६।२५ मन्दाक्षवीक्षमथ सक्थि (लिंग.) ७४ ममत्वाभिगमात्सत्त्वस्त- (ए.द्वा.) १५।५ मयो महाङ्गो वासन्तो (अभि.) ४।३२० मन्दा भवन्ति सालस्याः , (सूक्त.१) २६४ ममत्वेन बहून् लोकान् (अ.सा.) ८११ मय्यप्यस्मिन्स्मयारौ (जि.श.) ३९ मन्दार:स्वेष्टदानेषु, (श्री.त.) ३६।९ ममत्वेनैव निःशङ्क- (अ.सा.) ८९ मय्येव निपतत्वेतज्जगद्- (अष्ट.) २२८ मन्दारदामवन्नित्यमवासित- (वीत.) २ ममन्थ पाथसां नाथमयं (प्र.चि.) ५।२७२ मरकतं त्वश्मगर्भ (अभि.) ४।१३० मन्दारदाम्नि दौर्गन्ध्यं, (उ.क.) ३०९ मम प्रेतवने वास: प्रेत- (प्र.चि.) ५।३१७ मरको मारिस्त्रयस्त्रिंशदमी (अभि.) २२२३९ मन्दाद्भुमचारुपुष्पनिकरै- (प्र.श.) १०३ मम मङ्गलमित्यादे- (गु.प्र.) २०५ मरणं स्वायुषो वृद्धयै, (स्व.प्र.) ३३४ मन्दारार्कस्य पुष्पेण (भु.दी.) ३३ मम सत्यं मम सत्यं (भा.श.) ९१ मरणधर्मायं रागादि- (प्र.त.) ६६४ मन्दारौ त्र्यायषट्सु, (आ.सि.) २९३ मम स्पर्धां यत्त्वं वहसि (प्र.चि.) ७।२८५ मरणनिमित्तं जन्म, (मा.प.) २३ मन्दिरं कुण्डलं चैद (ह.सं.) ४८३ ममागमज्ञपुरुषाना- (दा.प्र.) ७१२३ मरणस्याभ्युद्यतस्य, (ध.सं) १४९ मन्दिरं नगरं ज्ञेयं निलयं (अ.नि.) १०५ ममान्तरः परीवारो (प्र.चि.) ७१०८ मरिचे तु द्वारवृत्तं (अ.चि) ३।११ मन्दिरं सदनं सद्म, (शा.ना.) २५३ ममाहमिति चैष यावद- (ए.द्वा.) ३१९ मरीचिकाजलज्ञानं (प्र.ल.) १४३ मन्दिरं सदनं सद्य निकाय्यो (अभि.) ४५६ समेति मतिमाश्रिताः (यो.शा.) आ६३२ मरीचिकादिविज्ञान
(यो शा) Ig20 सीनिमानिनि
(प्र.ल.) १६३ मन्दिराद्विमुखो यस्य, (वि.वि.) ३१५ ममेति हेतुशक्त्या चेत्तस्या- (शा.वा) ४।१२७ मरीचिप्रमुखाः सप्तर्षय- (अभि.) २।३८ मन्दिरो मकरावासे (अ.सं.) ३५८३ ममेदमहमस्येति (ए.द्वा.) १८।२३ मरुत्प्रियो रुद्धमरुत्पथो- (आ.म.) ११५ मन्दे त्वलस आलस्य- (श.र.) ३।३० ममेदमिति रक्तस्य (ए.द्वा.) १८।२४ मरुदेवात्रिशलाद्या (आ.उ.) २८ मन्देन्दुरगभौमाः (भु.दी.) २८ ममैव देवो देवः स्यात् (योग.) ३७ मरुदेवा मरुदेव्यप्याद्या- (श.र.) ११८ मन्दोऽप्यहार्यवचनः (ए.द्वा.) ७।२७ ममैश्वर्यं तदायत्तं (प्र.चि.) ५।३५ मरुदेवा विजया सेन (अभि.) ११३९ मन्दो मूढे शनौ रोगि- (अ.सं.) २।२२९ मयणाभिचन्दणागुरुकप्पू- (उ.त.) ६३ मरुदेशेऽवतंसे च (अ.सं.) ३२६२८ मन्मथः कामचिन्तायां (अ.सं.) ३।३११ मयरेण धणसहसं पउमेणु- (ह.सं.) ४२७ मरुद्दन्ती दन्तिष्वमरतरु- (ध.उ.) ६ मन्मथव्याकुलः किञ्चिदपि (धर्मो.) ११४ मया गृहीते चारित्रे, (वा.प्र.) २१ मरुन्मालाऽप्यथ वृद्धदारके (श.र.) ४।२२९ मन्मथस्तातमायातमुपेत्य (प्र.चि.) ६२ मया जिनाधीशवचस्सु (जै.त.) ५३६ मरुस्थल्यामकल्याण- (श्रा.कृ.) २९ मन्मनत्वं काहलत्वं, (यो.शा.) १०९ मया तदपि धार्योऽयं (प्र.चि.) ६६६ मरूपको मरुबको, (नि.शे.) २२३ मन्यते यो जगत्तत्त्वं, (ज्ञान.) १३३१ मया तावद्विधिनानेन (ए.द्वा.) ६३२ मरौ सुरतरुप्राप्तिर्दारिद्रये (आ.श.) ६९ मन्यते व्यवहारस्तु भूत- (अ.सा.) १८।१३ मया त्विदं केवललौकिक (जै.त.) ५२९ मर्कटस्तु कपावूर्णनाभे (अ.सं.) ३।१५७ मन्यन्तेऽन्ये जगत्सर्वं , (शा.वा) ४१ मया दृष्टं श्रुतं स्पृष्टं, (षड्.) १६८ मर्जिता, मुद्गादिरसे (श.र.) ३।४८ मन्यसे चेन तं सामा- (गु.प्र.) १९८ मया दृष्टं श्रुतं स्पृष्टं, (यो.शा.) आं॥१३९ मर्तव्यं वर्ततेऽवश्यं, (उ.क.) ४१४ मन्येऽत्र लोकनाथेन, (न.मा.) ७४४ मया परप्रेरणपारवश्या- (जै.त.) ५२६ मत्त्यौं चन्द्रसितौ स्वर्गों (त्रै.प्र.) ३२ मन्ये परोपकारित्वमुत्तमाद- (उ.क.) ३२६ मया पुरा पराभूता (प्र.चि.) ७।२८० मर्त्यः पञ्चजनो भूस्पृक् (अभि.) ३१ मन्ये वाचां तव विशद- (श.मं.) २६ मयाभिभूतः सम्भूतो (प्र.चि.) ७।२०७ मर्त्यमस्तकमाणिक्यं (दा.प्र.) ४।२८ मन्वानोऽपि जिनेशि (म.वि.) ८ मया विचारोऽयमवाचि (जै.त.) २८९ माः क्षत्रियवाडवप्रभृ- (द्वाद.) १८ मभजसानरयता, गणा (शा.ना.) २९८ मयाऽस्थापीति मावज्ञा, (सूक्त.१) ३३२ मत्र्येष्वपि कुलाचार्य- (प्र.चि.) ४।३०१ ममकाराहङ्कार-त्यागा- (प्र.र.) १८० मयि जीवति भृत्याणौ (प्र.चि.) ५।१८३ मर्दयित्वोदरं तेन, शूल- (आ.श.) ४८ ममकाराहङ्कारावेषां, (प्र.र.) ३१ मयि जीवति सर्वेऽमी (प्र.चि.) ७।२७५ मर्म कोषं च कलह, (ध.ना.) १९१ मम कालचक्रसमयान्, (पु.प.) ७ । मयि तुर्यं गुणस्थान- (प्र.चि.) ७११७ मर्मराले पर्पटश्चपटः, (श.र.) ३।४५ मम गृहवनमाला वाजि- (भा.श.) २६ मयि भक्तो जनः सर्व, (वि.वि.) ११।२० मर्मरो वस्त्रपत्रादेर्भूषणानां (अभि.) ६४१ मम तत्त्वरुचिर्नाम (प्र.चि.) ४१४६ मयि सन्निहितेऽपि (प्र.चि.) ५।१२९ मर्मस्पृङ्मर्मवाचा (नी.श.) १७
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