Book Title: Sanskrit Padyanam Akaradikramen Anukramanika 03
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 63
________________ उद्वत्सर-संवत्सर उपवासं तद्दिने च, उद्वत्सर-संवत्सर- (श.र.) २।५० उन्मूलितमावहितं स्यादु- (अभि.) ६।११६ उपधानीकृतबाहुः (य.कृ.) ३५६ उद्वरितं यदि कथमपि (य.कृ.) २९० उपकण्ठं सन्निधानोपान्ते (शा.ना.) ४४२ उपधारणे तु शीलण (क.क.) ३४९ उद्वर्तना-परावर्तना यदि (य.कृ.) ३६३ उपकरणत उपयुक्त-स्ततो (मा.प.) १३६ उपधूपित आसन्नमरणे (अ.सं.) ५।१९ उद्वहस्तनयः पोतो, दारको (ध.ना.) ४० उपकर्ता स्वतः कश्चिद- (सू.मा.) ३ उपनायस्तूपनयो वटूकरण- (अभि.) ३।४७८ उद्वहोऽङ्गात्मजः सूनुस्तनयो (अभि.) ३।२०६ उपकारं तु यो हन्ति स (अ.नि.) १२२ उपनिषत्तु वेदान्ते रहस्य- (अ.सं.) ४।१३८ उद्वासयन्त्यन्यगुणांश्चिर- (आ.म.) ३.५४ उपकारः प्रतिपन्नं २ (उप.) ३।१७९ उपनीय विकल्प्य दृश्य- (आ.म.) २१७५ उद्वाहनं द्विसीत्ये (अ.सं.) ४१६६ उपकारः प्रियं वाक्यं, (उ.क.) २७१ उपन्यासश्च शास्त्रेऽस्याः (अष्ट.) ११९ उद्वाहे मृगपैत्रः, (आ.सि.) ३३५ उपकारः सतां स्थान, (सूक्त.१) ७२ उपपतिस्तु जार: स्याद्- (अभि.) ३१८३ उद्विजसे दुःखेभ्यः, (आत्मा ) ७ उपकारकरं ज्ञात्वा, (क.को.) ३१ उपप्लववशात्प्रेम सर्वत्रै- (यो.बि) ४७५ उद्वेगं याति मार्जारः, (वि.वि.) ३६८९ उपकारापकाराभ्यां विपाका-(द्वा.द्वा.) २८७ उपप्लवौ राहूत्पातौ (अ.सं.) ४।३०४ उद्वेगकारिणः क्रूराः उपकारिकोपकार्या (अभि.) ४।५९ उपप्लुतं त्यजन् स्थानं (आ.उ.) १४७ उद्वेगकृद्विषादाढ्यमात्मघात- (अष्ट.) ७५ उपकारिस्वजनेतरसामा- (षो.प्र) २०१ उपभुङ्क्ते नृपः सौख्यं (त्रै.प्र.) ७६९ उद्वेगे विद्वेषाद्विष्टिसमं (षो.प्र) २१३ उपकारी विरोधी च (शा.वा) ६६ उपभोगोपायपरो, (ध.क.) ३०९ उद्वेगो हसितं शोको (द्वा.द्वा.) २७।१५ उपकारोऽपि निर्नाम (सू.मा.) १०६ उपमादेरमानत्वान्नाभावो (प्र.ल.) ११७ उद्वेजकोऽतिचाट्रक्त्या, (वि.वि.) ८।४३९ उपकार्यपकारिविपाकवचन-(षो.प्र) १५४ उपमायाः प्रमाणत्वे (प्र.ल.) ३७७ उद्वेजितोऽपि सद्वृत्तः (दृ.श.) १८ उपकार्या जलार्द्ररा (लिंग.) ३७ उपयामः परिणयो, (शा.ना.) १८८ उद्वेलमुत्सर्पति यौवनाब्धौ, (वि.म.) ११९३ उपकार्या राजगेहमुप- (अ.सं.) ४।२२२ उपयुक्तः स्वाध्यायं । (य.कृ.) ५० उद्वेलानन्दपाथोनिधिबल- (जै.वि.) १७ उपकुञ्ची कुञ्चिका च, (नि.शे.) ३३४ उपयुक्तानगारस्य, पादे (स.प.) १०३ उन्दरो-न्दुरो-न्दुरवः (श.र.) ४.३३६ उपकुल्यानि भरणी ब्राह्मं (आ.सि.) १६९ उपयोगः किल भक्ता- (य.कृ.) ५६ . उन्नतपाणिर्दुःशीला (सा.शा.) ३।१९ उपक्रमे कृतेप्यत्र लाभः (प्र.चि.) ५।१०१ उपयोग: स्पर्शादिषु (तत्त्वा ) २०१९ उन्नतमनोरथानां मनस्विना (कु.उ.) १६ उपघातानुग्रहकृति- (स्याद्.) १५ उपयोगमुपैति यच्चिरं (अ.सा.) ७/१० उन्नते दक्षिणे पार्श्वे स्त्रियः (सा.शा.) ३।२५ उपचर्यापि, सत्कृत्याल- (श.र.) ३९४ उपयोगविनिर्मुक्तः, (श्रा.कृ.) १०२ उन्नतैश्च बहुसौख्यं उपचारस्तु लञ्चायां, (अ.सं.) ४।२४२ उपयोगास्त्वश्वि १ मृगा (आ.सि.)६४ उन्नतैश्च समैः स्निग्धै- (सा.शा.) २६ उपचारादाप्तवचनं च (प्र.त.) ४।२ उपयोगेन निर्मुक्ता, (श्रा.कृ.) १२ उन्नतोपचितौ येषां (सा.शा.) २०४६ उपचाराद् रजः पांसुं, (ध.ना.) १५३ उपयोगे विजातीयप्रत्यया- (द्वा.द्वा.) १८।११ उन्नालाम्बुजलोलबाल- (शृ.श.) १०० उपचारा विशेषाश्च नैगम- (न.उ.) २४ उपयोगैकसारत्वादाश्व- (अ.सा.) १५/५७ उन्मज्जदाविर्भवदात्मदोषो (वि.म.) ११४८ उपचारेण चेत् तत् (न्या.सू.) ४२ उपयोगो लक्षणम् (तत्त्वा) २८ उन्मत्तच्छिनकरो (य.कृ.) २१८ उपचारेण बहुलो विस्तृ- (न.उ.) २५ उपरतविकल्पवृत्तिकम- (अ.सा.) २०१८ . उन्मत्तवेषः शबरः शिताङ्गो (अ.चि) २।४३ उपचारोऽत्र नाबाधात् (द्वा.द्वा.) ३१।३१ उपरागे मृगभेदे कलापे (अ.सं.) ३६२५ . उन्मत्तो मुचकुन्दे (अ.सं.) ३।२४५ उपचारोऽपि च प्रायो (यो.बि) १५ उपरिमे धृते राशौ (त्रै.प्र.) ११६१ उन्मनीभूयमास्थाय, (साम्य.) २ उपजोषं च समुपजोषं, (श.र.) ६९५ उपर्युपरि (तत्त्वा ) ४।१९ उन्माथः कूटयन्त्रं स्याद्वि- (अभि.) ३५९६ उपज्ञा ज्ञानमाद्यं स्याच्चर्चा (अभि.) ६९ उपर्युपर्यनङ्गोक्तिताम्बूलै- (प्र.चि.) ६३९ उन्माथो मारणे कूटयन्त्र- (अ.सं.) ३१३०८ उपतापमसम्प्राप्तः शीत- (यो.शा.) ७४६ उपलब्धिर्मती प्राप्तौ, (अ.सं.) ४।१५२ उन्मादादवमत्य रे (सं.क.) २६ उपतापो गदे तापे (अ.सं.) ४।२०८ उपलब्धिविधिनिषेधयोः (प्र.त.) ३५५ उन्मार्गकारणं पापं (न.उ.) ८० (उ.प्र.) २३० उपलब्धिलक्षणप्राप्तिस्तद्धे-(शा.वा) ५।४ उन्मार्गदेशको मार्गनाशको- (अ.वि.) १४ उपदेशं विनाप्यर्थकामौ (यो.बि) २२२ उपलब्धिलक्षणप्राप्तोऽर्थो (शा.वा) ५३ उन्मार्गनयनात् पुंसामन्यथा (द्वा.द्वा.) २२२ (शा.वा) १७ उपलब्धेरपि द्वैविध्यम- (प्र.त.) ३६७ उन्मार्गमिन्द्रियग्रामा- (उ.क.) ११ उपदेशस्त्वनेकान्तो हेतु- (द्वा.द्वा.) १७२८ उपलम्भस्त्वनुभवः (अभि.) ६.१५६ उन्मार्गस्थापनं बाढमसमञ्ज-(अ.सा.) १०॥३८ उपदेशादिना किञ्चित् (योग.) १८६ उपलम्भानुपलम्भनिमित्तं (प्र.मी.) ११२।५ उन्मिषत्पुरदरास्य कुलीने (आ.म.) ४६५ उपदेशे चेन्द्रियं तु (अ.सं.) ३।४७४ उपलम्भानुपलम्भसम्भवं (प्र.त.) ३७ उन्मिषितं विकसितं (अभि.) ४।१९४ उपदेशो न हिंसाया, (स.प.) ७४ उपलायां शर्करायुग्देशे (अ.सं.) ३६०१ उन्मीलच्चञ्चुचित्रीकृत- (जै.वि.) ५४ उपदेशो हि बुद्धा- (प्र.ल.) २६२ उपला शारिवा मूर्वा (लिंग.) ४० उन्मीलदृष्टितेजःशमितमन-(कु.वि) ३८ उपदेशो हि बुद्धादेरि- (प्र.ल.) २७७ उपवस्त्रमौपवस्त्रमुपवीते (अ.शि.) ३५३ उन्मीलन्ति सरोरुहाणि (१.ध.) ९४ उपधानविधिश्चित्रशेषाशय- (ए.द्वा.) १०।१९ उपवासं तद्दिने च, (स्व.प्र.) ५।१४ ४४

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