Book Title: Sanskrit Padyanam Akaradikramen Anukramanika 03
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 178
________________ परस्परोदीरित-दुःखाः परस्परोदीरित-दुःखाः परस्परोपग्रहो जीवानाम् परस्पृहा महादुःखं, परस्मात् परमेषा यन्निगूढं परस्मै प्रतिपाद्यत्वापरस्मै प्रतिपाद्यत्वात् परस्य पीडापरिवर्तनाते परस्य युज्यते दानं हरणं परस्य रोगान् हरतस्त्व परस्यापेक्षितां त्यक्त्वा, परस्वं तस्करी गुन् परस्वकाङ्क्षया जीवैः, परस्वग्रहणाच्चीर्यव्यपदेश (सूक्त. २) २० (ध.सं) २७ (उ.प्र.) २४५ परस्वयते येन प्रस्वत्वकृतोन्माथा, परस्वाम्ये (म्य) पि तेजस्वी (ज्ञान) १1७ (दृ.श.) २५ (अ.क.) १२ (पो.प्र) परहितचिन्ता मैत्री, परहितचिन्ता मैत्री पर - परां कोटिगतं सत्त्वं पराक्रमं सत्त्वमयं पराक्रमः पौरुषं च, परागमनपृच्छयां लग्ने परागचन्दने रेणौ गिरौ ६३ (इष्टा. २) ७८ (ध.उ.) ७४ (शा.ना.) ३५७ (1.प्र.) ४७६ (अ.सं.) ३।११५ (प्रकृ. ४२ पराधातं तथोच्छ्वासमात (प्र.स्व.) २३ पराधातं भयं कुत्सा पराधातोच्छ्वासपञ्चेन्द्रिय (प्र.स्व.) १०२ (ह.कां.) २९ (आ.सि.) १९७ (उप.) ३।२८ (श.र.) ६०४९ ६।४९ पराजयोऽधरैनं क पराजितेऽरिवेश्मस्थे पराणि रत्नानि १ सुरालि परानं परारिन्तनं परारितन परात् प्राप्तप्रतापानां, परात्मनिन्दाप्रशंसे परात्मानं नमस्कृत्य, पराधीनं शर्म क्षयि पराधीनं सुखं कष्टं परानन्दसुखास्वादी, परानन्दे च भद्रे च परानर्थो लघुत्वं वा परानुकूलां परपाकपाकिनी परान्नः परपिण्डाद परान् पातुस्तवाधीशो परापराधं व्याकुर्यात्, परापर्यभितो भूतो राम् (तत्त्वा) ३।४ (त) ५/२१ (ज्ञान) १२।८ (अ.सा.) ९१२९ (जै.मु.) १२३ (स्या.मु.) ६६ (अ.क.) २६७ (अ.सा.) १८/१०५ (श.पा. ३) २४ (चि.शु) १९ (यो.शा.) आं१५१ (सूक्त. १) १४९ (तत्त्वा) ६।२४ परापवादं प्रवदेत्, पराऽपवाददोषो हि पराभिप्रायतो ह्येतदेवं पराभिभूती यदि मान पराभिभूत्याल्पिकयापि पराभिमुख्ये प्राधान्ये ( स्व. प्र. ) १1१ (अ.सा.) ४।२६ प (त. अ) ३०६ (उप.) ३।४३ (षो.प्र) २४९ (अभि.) ४।४८ (प्र.चि.) ४/५ (अ.क.) २०५ (अ.सं.) ४।३४१ (ज्ञान.) २५४२ (त. बो) ७५ (यो.शा.) आं। २०८ (त. अ) (अ.सं.) ४।३३५ परिग्रहप्रौढशिलावलम्बिनः, (उ.स.) ९९ परिग्रहमहत्त्वाद्धि, मज्ज (यो.शा.) १६३ परिग्रहमहाग्रहैः (दा. प्र. ) ६।७१ परिग्रहमहारम्भात्यागो (स.प.) ७५ (जिन.) ७१ | परिग्रहस्य कृत्स्नस्यामि (ध.सं) २९ (उ.क.) ३२५ परिग्रहस्य सर्वस्य, (ध.सं) ११५ (अभि.) ३२४६९ परिग्रहात्स्वीकृतधर्मसाधना - (अ.क.) २०६ (तत्त्वा) ४।४७ परिग्रहारम्भमग्ना - स्तारयेयुः (यो.शा.) ६६ (वि.वि.) १०२४ परिग्रहपरिष्वङ्गाद् २५६ (द्वाद्वा.) ८|२ (सा.शा.) ३३९२ (अभि.) ३१२५ पराभूतभवानीका, पराभूतोऽपि पुण्यात्मा, पराभ्युपगमो मानं परायत्तेपि चैतस्मिपरार्थं व्यापयन् जीवो, परार्थग्रहणे येषां परार्धरसिको धीमान् परार्धरसिको धीमान्मार्ग परार्थसाधकं त्वेतत्सिद्धि परार्थसाधिका त्वेषा सिद्धिः परार्थस्वार्थराजार्थ- कारकं पराद्धपाथोनिधिपारखा परार्बुदो निमेषद्युत् परावभासकत्वं नैषां पराश्रयः सुवासन्ती, पराश्रितानां भावानां परिकर्मसूत्रपूर्वानुयोगपरिकर्मासंस्कारो (शा.ना.) २५१ परिकल्पनापि चैषा हन्त (षो.प्र) २५० परिकल्पितमेतच्चेन्नन्वित्थं (शाखा) ७२३ परिकल्पितसम्भवादपि परिग्रहारम्भरता न सन्तुष्टाः परिग्रही न जानाति परिग्रहे महाद्वेषो | परिघोषः स्यादवाच्ये | परिचितनयः स्फीतार्थों| परिचिन्त्य जगत्स्तवाश्रया | परिच्छदः परिबर्हस्तन्त्रो (सूक. १) १३ | परिच्छेदे तृतीयेऽथ (प्र. ल.) २४० परिच्छेदे द्वितीयेऽथो परिज्या युवनो नेमिचन्दिर (प्र. ल.) २१० (धर्मा) २८ परिणत एतस्मिन् सति (यो.शा.) १३० परिणतजनसेवा सङ्गतिः (द्वाद्वा.) १५।१२ परिणामफलं कर्म (यो.बि) २७२ परिणाममपूर्वमुपागतस्य यो. इ) २१८ | परिणामवर्तनाविधि(द्वाद्वा.) १९।२८ परिणामसहायनामभाक्, (वि.वि.) ८ ३२४ परिणामाच्च तापाच्च (शं.पा.३७६ | परिणामाच्च तापाच्च (अ. चि) ४।१९ परिणामितया द्रव्यं (जै.मु.) १८० (नि.शे.) ३८ (अ.सा.) १८।१०९ (अभि.) २।१६० परिकल्पिता यदि ततो परिकूटं हस्तिनखो नगरपरिक्षिप्य स्थितोऽज्ञानपरिग्रहं चेद्रजा परिग्रहः परिजने पत्ल्यां परिग्रहग्रहाऽऽवेशादुर्भाषिपरिग्रहदोषनदीप्रवाहे, परिग्रहनिषण्णोऽपि, (उ.क.) ३२२ (उ.प्र.) १४८ (शा.वा) ५/८ (अ.क.) ७२ (अ.क.) ७९ (अ.सं.) ७१४३ (उ.क.) १७२ ૧૫૯ परिबर्हः परीवारे (यो.शा.) आं॥ ३१५ (उ.प्र.) ७० परिपाट्यानुपूर्व्यावृदतिपरिपाट्यानुपूर्व्यावृदति| परिवर्त: परीवारे (त. अ) १९४ (अ.सं.) ४।३२० (ए.द्वा.) ७१३२ (ए. द्वा.) ४ १ (अभि.) ३।३८० (वि.प्र.) ११७ (वि.प्र.) ५७ (अ. चि) २१२ (पो.प्र) २२९ (नी.श.) ८ (ए. द्वा.) १९/२० (प्र.र.) ६२ (प्र.र.) २१८ (वि.म.) २२५ (अ.सा.) १८।६४ (द्वाद्वा.) २५/२२ (न.उ.) ९६ |परिणामित्व एवैतत्सम्यग - (यो.बि) ५०० परिणामित्वभिन्नश्चेन्नामनि- (न.उ.) ९७ (द्वाद्वा.) १४|४ (यो.वि) ४९० परिणामिनि कार्याद्धि परिणामिन्यतो नीत्या परिणामिन्यात्मनि सति परिणामी तनुव्यापी | परिणामी पुनः शब्दश्चाक्षुष - (जै. मु.) १९३ परिणामे नया: सूक्ष्मा (पो.प्र) २४५ (प्र.ल.) ३०७ (न.उ.) ७६ (शा.वा) ६।३१ (द.क.) २१९ ( अ.शि.) ३।२२ (प्र.चि.) ७२७ परिणामोऽपि नो हेतुः परिणीतस्त्रियो भर्तृपरिणेतोपयन्ता च यौतके परितः प्रावृता रौद्रदुर्ध्यानपरितः सर्वतो विष्वक् परितान्ती निजचरणापरित्यजन् पञ्चदश, परित्यागः कुसङ्गस्य, | परिधायः परिकरे, (अभि.) ६।१६५ ( य.कृ.) ३५९ श्री.कृ.) ९८ (सूक्त. १) ४४१ (अ.सं.) ४२२६ परिधिः परिवेषक्ष सूरसूतस्तु (अभि.) २२१६ परिधिस्थः परिचर आमुक्तः (अभि.) ३।४२९ | परिधो यज्ञियतरोः परिनिग्रहाध्यवसितश्चित्तैपरिपन्थी प्रत्यनीको, परिपाट्यां परिसरः (अ.सं.) ३।३३९ (ए. द्वा.) ८|२५ (शा. ना. ) ३५९ (अ.सं.) ४२६९ (अभि.) ६।१४० (अ.सं.) ४।३४२

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