Book Title: Sanskrit Padyanam Akaradikramen Anukramanika 03 Author(s): Vinayrakshitvijay Publisher: Shastra Sandesh MalaPage 38
________________ अरणी समिधि त्वेध अरणी समिथि त्वे अरण्य तयेः पुष्पं, अरण्यनलको रन्ध्री, अरण्यमटवी सत्रे वार्ध अरण्यवासिनः शुष्कतॄणा अरण्यान्या अन्तं द्विरदअरण्युष्णाग्निविज्ञान अरतिर्विषयग्रामे याऽशुभे अरत्निः कुप्परे पाणी अरये नभसे पयसे वयसे अरये नभसे पयसे वयसे अररी, स्तम्भाद्यधः स्थदारौ अरिचौराधमर्णाद्या अरिर्वैरी रिपुः शत्रुअरिष्टं सूत्यगारेऽन्तचिह्ने अरिष्टनेमिस्तु नेमिवरवर अरिष्टनेमौ नेमिश्च नेमी अरिहन्तो असमत्यो अरुणं सोहागं समुपणं अरुणा श्यामला वापि, अरुणे विपुलस्कन्धो अरुणो बालसन्ध्याभः अरूरी क्षणनुश्च रूढअरे अयि च है है च हंहो अरेखं बहुरेखं वा अरेख बहुरेख वा येषां अरेदोतो गुणसञ्ज्ञा, अरो जिनेऽरं चका अर्कः स्वमन्दभीमेभ्यो अर्क इष्टस्तु मघवान् अर्कमर्कटमाण्डुक अर्कस्तु पादपे ज्ञेयो नदी अर्कादग्रे चरे क्रूरे अर्काद्युच्चान्यज १ वृष अर्का भुवि द्वादश लोक अर्कारयोर्जस्य गुरोः अर्काकिगुरुसौम्याना अर्काकिबुधशुकाणाअर्काकाशिनः सिद्धये अर्काऽस्तान यथेह अर्केन्वोर्भुक्त्वांशकराशि अर्केऽधस्तमिते यावअर्कै विकीरणोऽद्ये अर्को दुभेदे स्फटिके 1 (श.र.) ३।३०२ अर्कोऽर्कपर्णो वसुको (हिं.प्र.) ४८ | अर्गला नरकद्वारे मोक्ष(नि.शे.) ३७१ अर्गला रक्षणे स्त्रीणां, (अभि.) ४।१७६ अगंलो तथा वर्गल्य(प्र.चि.) ४१३५५ अर्थः पूजाविधी मूल्येऽघं (भा.श.) २२ | अर्घकाण्डं प्रवक्ष्यामि (ए.द्वा.) १७।२८ अर्धकाण्डं प्रवक्ष्यामि (योग.) ९४ अर्घकाण्डमतो वक्ष्ये (अ.सं.) ३२३४९ अयमर्घार्थमर्घाहंमास्यं (श्री.वि.) १७ (हे.वि.) १८ (श.र.) ४।४७ ४२४७ (यो.शा.) ७०५ (शा.ना. ) ३५८ (अ.सं.) ३।१४३ (अभि.) १३० (श.र.) ११६ (उ.सा.) ३१ (आ.प्र.) ६८ (वि.वि.) ८ ३५३ (अ.चि) २२९ (अभि.) ६।३२ (अभि.) ३।१२९ (पंच.) १३० (वि.वि.) ५1३८ (ह.सं.) २९२ (संज्ञा) ३१ (अ.सं.) २२३८४ (आ.सि.) १३६ (अ.नि.) १५ (शा.ना.) ४७१ (अ.नि.) ९४ (1.प्र.) ५१५ ( आ. सि.) ९५ (श्री.त.) ३११५ (आ.सि.) १५२ (1.प्र.) ४८० (त्रै.प्र.) ४७४ (आ.सि.) २९१ अ) अर्चार्हतां संयमिनां अर्चिरर्ची सन्तेदन्तावूष्मा अर्थिधिष्णिणिस्तेजो, अर्जनगमनस्थानार्जनेषु अर्जनीयं कलावद्भिअर्जने रक्षणे नाशे, अर्जयत्यद्भुतां लक्ष्मी अर्जुनः फाल्गुनो जिष्णुः, अर्जुने ककुभः सेव्यः, अर्तिकर्तिकया लोकं, (ध.उ.) १० (आ.सि.) ३४४ (वि.वि.) ४१८ (नि.शे.) ४८ (अ.सं.) २०१ | अर्थस्य (श.र.) ४।१८५ अर्थस्य प्रमितौ न (अ.सा.) ९११७ अर्थस्य सर्वस्य यथा (वि.वि.) ५०१४६ अर्थस्यालौकिकत्वं (श.र.) ४।४५ अर्थहत्प्रतिमोत्ताना, (अ.सं.) २२५१ अर्थत् प्रतिमोत्ताना (बिम्ब . ) ११ (वै.प्र.) ७९१ अर्थास्तथासङ्ग्रहसङ्ग (जै.मु.) २३२ (जै.प्र.) १११० अर्थाः सर्वेऽपि च सामान्य- (न.क.) ३ (ह.कां.) ७१ | अर्थात्कामाच्च धर्माच्च, (स.प.) ७८ (आ.सं.) २१३३७ अर्थादधिकनेपथ्यो, वेष- (वि.वि.) ८२४१४ (क.प्र.) १७३ अर्थादधिनेपथ्यो महाधनी (कु.व.) ३७ (श.र.) ४।११५ अर्थादर्थान्तरे शब्दाच्छब्दा- (गु.क्र.) ६३ अर्थादावविधानेऽपि (यो.वि) २२३ | अर्थान्तरापदेश्यक्ष सरूपक्षेति (यो.शा.) ६५३ अर्थापत्तिरभावक्ष, भाट्टानों (षड्) ७० अर्थापतेर्न मानत्वं अर्थापत्यन्तरेणैव अर्थाभावेऽपि दातारः, अर्थाभावे भवच्चेतः (शा.ना.) ७२ ( न्या. सू.) १५ (प्र. ल.) ३५८ (ध.क.) ११२ (प्र. ल.) १६० अर्था मूलमनर्थानामिति (उ.क.) १४८ अर्थालम्बनयोश्चैत्य- (ज्ञान.) २७/५ अर्थासन्निधिभावेन तद्दुष्टा (शा.वा) ८।१०४ अर्थिनः खलु सेवन्ते (सू.मा.) ६८ अर्थे निःसीम्नि पाथः प्लव - (ध.शि.) २६ अर्थे महेन्द्रजालस्य दूषिते - (अ.उ.) ११६३ अर्थों ज्ञानसमन्वितो अर्थो ज्ञानान्वितो (षड्.) १४५ अर्थो ज्ञानान्वितो वैभा (क.क.) ५७ (वि.वि.) ७1५ (यो.शा.) आं २१६ (उ.क.) १२९ अर्थं काममपेक्ष्य धर्ममथवा (प्र.श.) ५२ अर्थ विनापि शब्दस्य (प्र. ल.) १६२ अर्थं शब्दनयोऽनेकैः (न.क.) १४ अर्थः प्राणापहाराय, (क.को.) ५१ अर्थ एव ध्रुवं सर्व- (वि.वि.) २।४४ |अर्थकामकथा धर्मकथा (द्वाद्वा.) ९११ अर्थकामविमिश्रं यद्यच्च (अ. उ.) ११२० अर्थकामापवर्गाः स्युः, (उ.क.) ४७ अर्थक्रियाकारि तदेव अर्थक्रिया यतोऽसौ वा अर्थक्रियायां पुनरर्थमात्र अर्थक्रियासमर्थत्वं क्षणिके | अर्थक्रियासमर्थेऽर्थे अर्थक्रियासामर्थ्यात् अर्थग्रहणरूपं यत्तत्स्वअर्थना प्रार्थना याच्या, | अर्थप्रकाशकत्वमस्य अर्थमिच्छन्ति सन्तोऽपि अर्थयाथात्म्यशङ्का तु अर्थलुब्धः पूर्णकार्यो अर्धवन्तोऽर्थसारेण ૧૯ (उप.) ३।१९० (ध.ना.) १४४ (नि.शे.) १०३ अर्थव्यक्ति विविक्तां (ध.क.) ३४७ (जि.श.) ४५ अर्थव्यञ्जनयोगानां विचारो- (अ.सा.) १६।७५ अर्थव्यञ्जनयोरेवमर्थस्तु (ए.डा.) १९/९ (तत्त्वा) १।१७ अर्धपूर्वपदो नावरण(प्र.प्र.) १० (जै.त.) ५८ (प्र.प्र.) ६५ (वि.वि.) १।१५० (स्या.मु.) २२ अर्थोप्यनर्थहितुः किं, (शा.वा) ६।२५ अर्थोऽभिधेयरैवस्तु, (प्र.प्र.) ५२ अर्थो मूलमनर्थानामर्थो (शा.वा) ६।२४ अर्थोऽयमपरोऽनर्थइति (प्र.ल.) २० अर्थो लक्ष्मीः स्वापतेयं, (प्र.मी.) ११११३१ अर्को हानच बहुधा (शा.वा) ५।१२ (शा.ना.) ३१७ (प्रत. ) ४।१२ (धर्मा) १५ (द्वाद्वा.) ८1१४ (धर्मो.) ८४ अर्थ्यं शिलाजतुन्यर्थअर्द्धनिमाने बिम्बे अर्द्धमशनस्य सव्यञ्जनस्य अर्द्धयोगोऽपि निर्दिष्टः अर्द्धशब्दा घटकन्याअर्द्धरुककञ्चुकयोः अर्द्धारुकोऽपि ते अर्धः खण्डेऽर्धं समांशेऽअर्धचन्द्राकृतिः सिद्धअर्धदुक्वीक्षणं काक्षः, अर्धपूर्वपदो नावष्ट्यण (ष. प.) २८ (वि.वि.) ८।२७२ (श्री.त.) १११५ (अ.ना.) २३ (त. अ) २३८ (अ.सा.) १२/५७ (शा.ना.) १८० (हृ.प्र.) ११ (अ.सं.) २/३३६ ( य.कृ.) ३४१ (य.कृ.) २८२ (1.प्र.) १५७ (ई.प्र.) ८५ (य.कृ.) ३५ (य.कृ.) २७ (अ.सं.) २।२३५ (श्री.त.) २०/१५ (शा.ना.) २१५ (लिंग.) १२५Page Navigation
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