Book Title: Sanghpattak Author(s): Jinvallabhsuri Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak View full book textPage 9
________________ - अथ श्री संघपट्टक: AAAAAAA पख्य नाग हमेशां नोळो रहे बे. तेथी तेवा गोळाओने, कपटी षधारी चैत्यवासिओ अनेक बाहानां नन्ना करीने उगवा मांमया. श्रावी गमबम थोमाज वखतमां बहु वधी पनी एटले देव(गणिना पड़ी ५५ वर्षे स्वर्गवासी थएला हरिलजसूरिए महानिजीयनो उधार करतां चैत्यवासनो सारी रीते तिरस्कार कों . सदरहु हरिजप्रसूरि चैत्यवासिओना मंगळमां दीक्षित थया हता बतां परम विधान होवाथी तेमणे तेमना पदन खुब खंमन कयु . श्रा मामलो एटले लगण वध्यो के निर्गय मार्ग विरलप्राय यश पमयो, निर्गय प्रवचनपर ताळां देवायां अने कपोल कल्पित ग्रंथो तेमनी जग्याए नन्ना करवामां आव्या, एटदुंज नहि पण संवत् जर नी सालमां वनराज चावमाए ज्यारे अपहिलपुर पाटण वसाव्युं त्यारे तेमना चैत्यवासि गुरु शीळगुणसूरिए तेना पासेथी एवो रुको लखावी लीधोके आ राजनगरमांमारा पदना यतियो सिवाय वसतिवासि साधुओने दाखल थवा नहि देवा. ते रुक्काने तोकवा माटे अन्नयदेवसरिना गुरु जिनेश्वरसूरि तथा वुफिसागरसरिए सं. १0७४ मां दुर्लनदेवनी सजामा चैत्यवासिनो साथे विवाद करी जय मेळव्यो, त्यारथीज पाटणमा वसतिवासिओनी आवजाव 'शरु थ । श्रारीते चैत्यवासियोनी पेहेली हार जिनेश्वरसूरिए करी उता इजु मारवाममांतेमनुं नारे जोर रह्यु हतुं तेजोर तोमवा तेमना प्रशिष्य जिनवद्धजसरिखमा थया. तेमणे आगमना पदने अनुसरी "पोतानी अभुत कवित्वशक्तिनाबले युक्तिपुरस्सर तेम खंकन करवाPage Navigation
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