Book Title: Sanghpattak
Author(s): Jinvallabhsuri
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

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Page 6
________________ - अय श्री संघपटक पण मुख्य नाग तो वसतिवासी ज रह्यो हतो अने ते नागमा अग्रेसर तरीके ओळखाता देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणे जगवान्थी ए८० मा वर्षे वहाजीपुरमा संघने एकत्रित करी जैनसूत्रोने पुस्तकारुढ कयाँ बे. सदरहु देवर्किगणि, जगवान्थी १००० वर्षे स्वर्गवासी थया अने ते साथे खलं जिनशासन गुम थई तेना स्थाने चैत्यवासिनोए पोतानो दोर श्रने जोर चलाववा मांझयो. आमाटे नवांगी वृतिकार श्रीअन्नयदेवसुरिश्रागम अहोत्तरी नामना ग्रंथमां नीचेनी गाथा आप दे के: देवहिखमासमणजा-परंपरं नाव वियाणेमि, सिदिलायारे छविया दवेण परंपरा बहुदा. १ भावार्थ:-देवर्धिकमाश्रमण सुधी जावपरंपरा हुं जाणुंडं, बाकी ते पनी तो शिथिलाचारिओए अनेक प्रकारे अन्यपरंपरा स्थापित करी . श्रा रीते नगवान्थी आउसो पचाश वर्षे चैत्यवास स्थपायो तोपण तेनुं खरेखलं जोर वीरप्रनुथी एक हजारवर्ष वीत्या केमे वधवा मांमयु, था अरसामा चैत्यवासने सिद्ध करवा माटे श्रागमना प्रतिपक्ष तरीके निगमना नामतळे उपनिषदोना ग्रंथो गुप्त रीते रचवामां आव्या अने तेओ दृष्टिवाद नामना बारमा श्रंगनाटेला ककमा डे एम लोकोने समजाववामां श्राव्यु. ए ग्रंथोमां एवं स्थापन करवामां श्राव्युं ले के आज कालना साधुओए चैत्यमा वास करवो व्याजबी ने तेमज तेमणे पुस्तकादिना जरुरी काममा खप मागे माटे यथायोग्य पैसाटका पण संघरवा जोश्ये. इत्यादि अनेक

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