________________
बोधिदुर्लभ भावना-धनकनकञ्चन राज सुख, सहि सुलभ करि जान ।
दुर्लभ है संसार में, एक जथारथ ज्ञान ॥११॥ धर्म भावना -जाचे सुरतरु देय सुख, चिन्तन चिन्ता रैन ।
विन जाचे विन चिन्तये, धर्म सकल सुख दैन ॥१२॥
संक्षिप्त सूतकविधि।
सूतकमें देव शास्त्र गुरुका पूजन प्रक्षालादिक फरना, तथा पंदिरजीको जाजम वस्त्रादिको स्पर्श नहीं करना चाहिये । सूतक का समय पूर्ण हुये बाद पूजनादि फरके पात्रदानादि फरना चाहिये। १-जन्मफा सूतक दश दिन तक माना जाता है । २-यदि स्त्रीका गर्भपात (पाचवें छठे महीनेमें) हो तो जितने महीनेका गर्भपात हो उतने दिनका सूतक माना जाता है। ३-प्रसूति स्त्रीको ४५ दिनका सूतक होता है, फहीं फहीं चालीस दिनका भी माना जाता है। प्रसूतिस्थान एक मास तफ अशुद्ध है ४-रजस्वला स्त्री चौथे दिन पतिके भोजनादिकके लिये शुद्ध होती है परन्तु देव पूजन, पात्रदानके लिये पाचवे दिन शुद्ध होती है। व्यभिचारिणी स्त्रीके सदा ही सूतक रहता है। ५ मृत्युका सूतक तीन पीढी तक १२ दिनका माना आता है। पौथी पीढीमें छह दिनका, पाचवीं छठी पीढी तक बार दिनका, सातवीं पीढीमें तीन, आठवीं पीढीमें एक दिन रात, षषमी पीटी में स्नानमात्रमें शुद्धता हो जाती है ।