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तुम पदपराज पूजत, विन्त रोग टर जाय । शन मित्रता को धर. विष निरविपता थाय॥६॥ चक्री खगधर उन्द्र पद. मिले आपत आप । अनुकम ने शिवपद लहें, नेम सकलहनि पाप ॥१०॥ तुम बिन में व्याकुल भयो, जसे जल विन मीन । जन्म जरा मेरी हरो, करो मोहि स्वाधीन ॥११॥ पतिन बहुत पावन किये, गिनती कॉन करेव । अमन से तारे प्रम, जय जय जय जिनदेव ॥१२॥ थकी नाय भवदधि विष, तुम प्रभु पार करेव । स्वबटिया तुम हो प्रभु, जय जय जय जिनदेव ॥१३॥ रागसहित जगमें रुल्यो, मिले सरागी देव । वीतगग भेट्यो अब, मेटो राग कुटेव ॥१४॥ कित निगोद कित नारकी, किन तिर्यश्च अज्ञान । आज धन्य मानुप भयो, पायो जिनवर थान ॥१५॥ नुमको पूजे सुरपति, अहिपति नरपति देव । धन्य भाग्य मेरो भयो, करन लग्यो तुम सेव ॥१६॥ अगरणके तुम शरण हो, निराधार आधार । में इवत भवसिन्धु में, खेय लगाओ पार ॥१७॥