Book Title: Samyag Darshan
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 5
________________ सर्व प्रथम aarthesidiarasinalincandasaints areMichnalahsnilicanticandlincanadanecondinseamlescant Macanalhsalinsanifes हे जीवो ! यदि आत्मकल्याण करना चाहते हो तो। पवित्र सम्यग्दर्शन प्रगट करो ! वह सम्यग्दर्शन प्रगट करनेके लिये सत्समागमसे स्वतः शुद्ध और समस्त प्रकारसे परिपूर्ण आत्मस्वभावकी रुचि और विश्वास करो, उसीका लक्ष और आश्रय करो । इसके अतिरिक्त जो कुछ है उस सर्वकी रुचि, लक्ष और आश्रय छोड़ो ! त्रिकाली स्वभाव सदा शुद्ध है, परिपूर्ण है और वर्तमानमें भी वह प्रकाशमान है। इससे उसके आश्रयसेलक्षसे पूर्णताकी प्रतीतिरूप सम्यग्दर्शन प्रगट होगा । यह सम्यग्दर्शन स्वयं कल्याणस्वरूप है और वही सर्व कल्याणका मूल है। ज्ञानी सम्यग्दर्शन को कल्याण की मूर्ति कहते हैं । इसलिये है। हे जीवो! तुम सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करनेका अभ्यास करो! लाणा शाम्पमा शाशमणाशाष्ठपणासारामा OPषणक्षाणाणाशाष्टणpregreeणाष्टपणापा

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