Book Title: Sammatitarka Maharnavatarika
Author(s): Vijaydarshansuri
Publisher: Jainmarg Prabhavaka Sabha Madras

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ अने द्वात्रिंशिकानो ठेर ठेर उपयोग कर्यों छे अने केटलाक ग्रंथो उपर तो टीका टिप्पणो करी तेनी प्रत्ये आदर बताव्यो छे. धवळटीकामां पण सम्मतिनो ठेर ठेर उपयोग थयो छे. आम पू. आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि अने तेमना सम्मतिग्रंथने तेमना पछीना थयेला तत्त्वगवेषक ग्रंथकारोए परस्पर संयुक्त रीते स्तवेल छे. विक्रमनी आठमी शताब्दियी सम्मति दर्शनप्रभाषक ग्रंथ छे. शास्त्रोमा ठेर ठेर जणाव्यु छ के मुनिए निर्दोष आहार व्होरवो छतां पण दर्शनप्रभावक शास्त्रोना अभ्यासी मुनिने तेवो निर्दोष आहार व्होरबानो योग न मळे तो अनेषणीय आहार होरीने पण दर्शनप्रभावकशास्त्रोनुं अध्ययन कर. आ वात निशीथभाष्यमा . 'दसणपभावगाणं सत्थाणठाते सेवतिजाउ.' कही जणावेल छे. विक्रमनी आठमी शताब्दिमां थयेल जिनदासगणिए नंदीसूत्र उपर चूर्णि रची छे, आ चूर्णिमां पण निशीथभाष्यनी पेठे दर्शनप्रभावकशास्त्रोना अभ्यासीने अकल्पित आहार सेवनमा प्रायश्चित न लागे ते जणाव्यु छ अने तेमां दर्शनप्रभावक शास्त्रो कोने गणा ते जणावतां सिद्धिविनिश्चय अने सम्मतिप्रकरणनो तेमणे उल्लेख कर्यों छे. दसणणाणप्पभावगाणि सत्याणि सिद्धिविणिच्छियसंमतिमादि गेण्हंतो असंथरमाणे जं अकप्पि पडिसेवति जयणाते तत्य सो सुही अप्रायच्छित्ती भवतीत्यर्थः (निशीथचूर्णी) 'कारणवश जो यतनाथी सिद्धिविनिश्चय सन्मति वगेरे दर्शनप्रभावक शास्त्रोने शीखनार साधु अकल्पित वस्तुनु सेवन करे तो पण ते शुद्धज छ प्रायश्चित्त तेने नथी लागत.' -आथी ए स्पष्ट छ के विक्रमनी आठमी शताब्दिथी तो सम्मतितर्क ग्रंथ दर्शनप्रमाक्क शाख तरीके जैनशास्त्रोमां ठेरठेर उल्लेखित करायेल छे. सिद्धसेनदिवाकरसूरिजीवनपरिचय. आ दर्शनप्रभावक सम्मतिपकरणना रचयिता सिद्धसेन दिवाकरसरि क्यारे थया तेमनो जीवनवृत्तांत शो हतो ते माटे आपणी पासे वे साधनो छे १ तेमनी कृतिओ अने २ तेमनो पछीना थयेला ग्रंथकारोए करेल साहित्य. सिद्धसेन दिवाकरमरिना रचित ग्रंथोमा हाल २४ ग्रंथो छ तेमा २१ बत्रीसी अने न्यायापतार कल्याणमंदिर ए २३ संस्कृत कृतिओ छे. अने प्राकृतभाषामां रचेल सम्मतिप्रकरण छे. आ चोवीस ग्रंथो पैकी पांचमी अने एकवीशमी बत्रीसीमां १ प्रांत भागमा सिद्धसेन शब्दनो उल्लेख छे. वाकीना कोइपण ग्रंथमां सिद्धसेन दिवाकरसूरिनो उल्लेख नथी के तेमना जीवन संबंधी बीजी विशिष्ट माहिती नथी. १ इति निरुपमयोगसिद्धसेनः प्रबलतमोरिपुनिर्जयेषु वीरः" । ५, ३१. महाशान्तिभर्ता महासिद्धसेनः । महाधिनेशो महाज्ञामहेन्द्रो ॥ २१. ३१. "Aho Shrutgyanam"

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 556