Book Title: Sammatitarka Maharnavatarika
Author(s): Vijaydarshansuri
Publisher: Jainmarg Prabhavaka Sabha Madras

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Page 16
________________ १० आथी देवपाल गुरुने परम उपकारी मानवा लाग्यो. ते बोल्यो 'नाथ ! आप खरेवर दिवाकतुल्य छो. मारो शत्रुभयनो अंधकार तमे खरे अवसरे दुर कर्यो छे. आ पछी देवपाळे सिद्धसेनसूरिने दिवाकरपदथी नवाज्या अने सिद्धसेनसूरि सिद्धसेनदिवाकरसूरि तरीके त्यारबाद प्रसिद्धि पाम्या. राज्यना अति संसर्गे जते दिवसे सिद्धसेनसूरि धर्मगुरुने बदले राजगुरुना ठाठथी रहेवा लाग्या. पालखीमां बेसी रोज राज्यसभाए जाय. अने पालखीमां बेसी आवे. आ वात तेमना गुरुमहाराज वृद्धिवाद सांभळी त्यारे तेमने घणुं दुःख थयुं. 'शासननी प्रभावना करे तेवो विद्वान् आम शासननी अपभ्राजनामां केम पडी जाय छे ?' ए विचारे वृद्धवादिसूरि गच्छथी जुदा पडधा अने कुर्मारपुर आव्या. सुखासन उपाडवाना समये भोइनी जग्याए कांबळी ओढी पोते गोठवाई गया. त्रण भोई जुबान हता एटले सडसडाट चालता वृद्धवादि वृद्ध होवाथी कंपता हता. आथी पालखी घडीक नीची उंची थवा लागी एटले अंदर बेठेल सिद्धसेन अकळाया अने बोल्या. 'भूरिभार भराक्रान्तः स्कंध ः किं तव बाधति ?' हे वृद्ध घणो भार उचकवाथी शुं तारो खभो दुःखे छे ? ' वृद्धवादिए आ वचन सांभळी विचार्य के संस्कृतनो समर्थ विद्वान् एशआराममां केवो उपयोग शून्य बन्यो छे 'बाधते' प्रयोगने बदले बाधति बोले छे तेमणे कंपता अचाजे करूं. 'न तथा बाधते स्कंधः यथा बाधति बाधते' ( तमारा जेवा समर्थ विद्वान् बाधते ने बदले बाधति प्रयोग उच्चारे छे. तेथी मने जेटलं दुःख थाय छे तेटलं दुःख खभा उपरना भारथी थतुं नथी) सिद्धसेन चमक्या. उपयोग शून्यता माटे तेमने शरम उपजी. सुखासनमांथी हेठे उतर्या अने वृद्ध सामे नजर नांखी तो गुरुमह। राजने जोया. सिद्धसेन शरमाया. गुरु पासे तेणे प्रायश्चित्त लीधुं अपत्यागमां जोडाया. गुरु थोडा वखत बाद स्वर्गे संचर्या. गच्छना नायक सिद्धसेन शासन प्रभावना करता पृथ्वी पावन करवा लाग्या. [वृद्धवादीसरिए सिद्धसेनदिवाकरने पालखी उपाडी 'भूरिभारभराक्रान्तः' पद कही प्रतिबोध कर्यो तेनो उल्लेख उपदेशप्रासाद विगेरेमां छे.] प्रभावकचरित्र विगेरेमां तो आ संबंधमां आ प्रमाणे लख्युं छे "वृद्धवादीसरिए सांभळयुं के सिद्धसेन राजभक्तिना मोहमां पडी पालखी तथा हाथी विगेरे वाहनो उपर सवार थइ राजमंदिरे जाय आवे छे तेथी तेमने समजाववा गुरुमहाराज कुर्मारपुर नगरे गया. सिद्धसेन राजमार्ग उपर पालखीए बेसी जवानो तैयारी करे छे अने लोको तेनी बिरुदावली पोकारे छे ते बखते वृद्धवादीसरिए कां 'विद्वान ! मारी एक शंका दूर न करो ?' एम कही नीचेनुं पद्य "Aho Shrutgyanam"

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