Book Title: Sammatitarka Maharnavatarika
Author(s): Vijaydarshansuri
Publisher: Jainmarg Prabhavaka Sabha Madras

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Page 18
________________ बीजा माणसो तो भूले पण तमारा जेवा महा विद्वान पण भूले तो बीजानी शी वात करवी. ? तमे संतोपथी सद्ध्यानने पुष्ट करी मारा आपेला शास्त्रवचनने पचाचो. थांभलामाथी प्राप्त थयेल पुस्तक शासनदेवीए हरी लीधुं ए योग्यज थयु. कारण के अत्यारे तेने पचावनार योग्य त्यागी ओ क्या छ ? गुरुनो आ उपदेश सांभळी सिद्धसेने का हे प्रभो ! जो भूलथी शिष्यो आडे रस्ते न जाय तो प्रायश्चित्त विधायक शास्त्र शा काममां आवे ? माटे हवे तमे प्रायश्चित्त वडे मने शुद्ध करो' गुरुए घटतुं प्रायश्चित्त आपी छेक्टे तेमने पोताने आसने बेसाडया अने गुरु स्वर्गे सिधान्या. संस्कृत भाषाना प्रकाण्ड विद्वान सिद्धसेनने एक वखत एवो विचार आयो के 'नमो अरिहंताणं,' विगेरे सूत्रोने सुंदर संस्कृत भाषामां वनाव्यां होय तो केवु सारं ? श्रमणसंघना वृद्धस्थविरो चोंकी उठ्या अने बोल्या. 'बाल, स्त्री अने मन्दना माटे आ सिद्धांत आपणा पूर्वगणघरभगवंतोए प्राकृतमा गुंथ्यो छे तेना उपर अनादरनो विचार केम कराय ! आ चितवन भयंकर पापरुप छे. आ पापनी शुद्धि माटे, शास्त्र पारांचिक प्रायश्चित्त कहे छे.' सिद्धसेनदिवाकरसरिने पोतानी उतावळy भान आव्यु. तेमणे पारांचिक प्रायश्चित्त स्वीकारी गच्छ छोडयो. सात वर्ष छुपा वेशे चारित्र पाळ्युं अने त्यारयाद तेओ शासनप्रभावना करवा अवंति तरफ चाल्या. अवंतिना सीमाडामां ते वखते कुडंगेश्वरनुं भव्य मंदिर हतुं. ते मंदिर यात्रानुं धाम हतुं. पूजारी अने भक्तवर्ग आवे ते पहेला तो अवधूत जेवा वेषवाळी सिद्धसेन लिंग समक्ष पग करी बेठा. पूजारीओए उठाडवा घणो प्रयत्न कयौँ पण ज्यारे ते अवधूत न उठयो एटले राजा आव्यो अने तेणे कयु 'अवधूत ! महादेवनी अवज्ञा न होय, तेने तो नमस्कार, होय. सिद्धसेन बोल्या 'हुँ नमस्कार करीश. पण आ देव मारा नमस्कार नही सहन करी शके ?' राजाए कडा 'एम ते होय ? करोने नमस्कार ? सिद्धसेने कल्याणमंदिरनुं स्तोत्र आरंभ्यु. पृथ्वी कंपवा लागी. धूमाडाना गोटेगोटा नीकळवा लाग्या प्रेक्षकोने लाग्युं के अंदरथी अग्नि नीकळशे अने अवधृतने भरखी खाशे. देवनी. आशाताना नुकशान कर्या विना थोडी रहे ? त्यां तो तेरमो श्लोक बोलतां लिंग फाटयुं अने तेमांथी पार्श्वनाथभगवाननी प्रतिमा प्रगटी. राजा आश्चर्य पाम्यो अने पूछयु के 'आ बधुं शुं ?' त्यारे सिद्धसेन दिवाकरसूरिए राजाने अवंति सुकुमाळर्नु वधु वृत्तान्त कही अवंतिपार्श्वनाथनो इतिहास समजाव्यो. विक्रम सिद्धसेनदिवाकरनो भक्त बन्यो अने तेणे सो गाम मंदिरना निभाव माटे आप्यां. श्रमणसंघ सिद्धसेनदिवाकरमरिना आ शासन प्रभावनाथी प्रसन्न थयो. अने तेणे तेमने गच्छनायक तरीके पूर्वनी पेठे स्थाप्या. सरिए आम प्रायश्चित्त पुरु कयु. "Aho Shrutgyanam"

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