Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Himmatlal Jethalal Shah
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 666
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ૬૩ર સમયસાર [भगवान श्रीकुंकुं६ गाथ पृष्ठ गाथ | पृष्ठ | आयासं पि ण णाणं | आसि मम पुव्वमेदं ___ इ इणमण्णं जीवादो इय कम्मबंधणाणं उदओ असंजमस्स दु उदयविवागो विविहो उप्पण्णोदयभोगो उप्पादेदि करेदि य उम्मग्गं गच्छंतं उवओगस्स अणाई उवओगे उवओगो उवघायं कुव्वंतस्स उवघायं कव्वतस्स उवभोगभिंदियेहिं |४०१ | ५६८ | एमेव कम्मपयडी- | १४९ | २४१ । । २१ | ५५ । एमेव जीवपुरिसो। २२५ | ३४७ एमेव मिच्छदिट्ठी ३२६ । ४७२ | | | एमेव य ववहारो। ४८ | ९७ २८ | ६४ | एमेव सम्मदिट्ठी २२७ | ३४७ २९० | ४२५ | एयं त अविवरीदं १८३ | २८६ | एयं तु जाणिऊण ३८२ | ५२७ १३३ | २०९ | एयत्तणिच्छयगओ ३ । १० १९८ | ३१० | एयत्तु असंभूदं २२ | ५५ २१५ । ३२८ | एवमलिये अदत्ते २६३ | ३९१ | १०७ | १८९ | एवमिह जो दु जीवो। ११४ | १९४ २३४ | ३६१ | एवम्हि सावराहो ३०३ ८९ | १६३ | एवं जाणदि णाणी १८५ | २९० १८१ | २८६ | एवं ण को वि मोक्खो । | ३२३ । ४७० २३९ | ३६९ | एवं णाणी सुद्धो २७९ | ४१२ २४४ | ३७४ | एवं तु णिच्छयणयस्स |३६० | ५०५ १९३ | ३०३ | एवं पराणि दव्वाणि । ९६ | १७२ | एवं पुग्गलदव्वं ६४ | ११७ एवं बंधो उ दुण्हं वि | ३१३ | ४५९ । ८२ | १५१ । एवं मिच्छादिट्ठी २४१ | ३६९ ४४ | ९१ | एवं ववहारणओ २७२ | ४०४ ९० | १६४ | एवं ववहारस्स दु ३५३ ५७ । | १११ । एवं ववहारस्स दु ३६५ ।५०५ ६५ | ११८ । एवंविहा बहुविहा | ८८ १४० | २१३ । एवं संखुवएस ३४० | ४८१ १३८ । २१२ | एवं सम्मद्दिट्ठी २०० | ३१२ २०६ | ३२५ | एवं सम्मादिट्टी २४६ | ३७४ २७० | ४०० | एवं हि जीवराया १८ । ४९ ६६ | १९१ | एसा दु जा मदी दे । २५९ | ३८८ १११ | १९१ | क १७६ | २७४ ९७ | १७४ | कणयमया भावादो | १३० | २०७ | १३५ । २०९ | कम्मइयवग्गणासु य | ११७ | १९६ २१४ | ३३४ | कम्मं जं पुव्वकयं ३८३ | ५३३ | ४९६ एएण कारणेण दु एए सव्वे भावा एएसु य उवओगो एएहिं य संबंधो एक्कं च दोण्णि तिण्णि | एकस्स दु परिणामो एकस्स द् परिणामो एदम्हि रदो णिच्चं एदाणि णत्थि जेसिं एदाहिं य णिवत्ता एदे अचेदणा खलु | एदेण कारणेण दु एदेण दु सो कत्ता | एदेसु हेदुभूदेसु | एमादिए दु विविहे Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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