Book Title: Samaysara
Author(s): Kundkundacharya, Himmatlal Jethalal Shah
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates 642 સમયસાર [भगवान श्रीकुंदु कल | पृष्ठ कल | पृष्ठ श | रागद्वेषविभावमुक्तमहसो 223 532 | व्यवहारविमूढदृष्टयः / 242 586 रागद्वेषविमोहानां 119 | 277 | व्याप्यव्यापकता तदात्मनि / रागद्वेषाविह हि भवति 218 521 | व्यावहारिकदृशैव केवलं |210 / 495 रागद्वेषोत्पादकं तत्त्वदृष्ट्या / 219 521 | शुद्धद्रव्यनिरूपणार्पित- |215 / 515 रागादयो बन्धनिदानमुक्ता- 174 411 | शुद्धद्रव्यस्वरसभवनात्कि |216 / 515 रागादीनामुदयमदयं 179 422 स रागादीनां झगिति विगमात 124 | 283 | सकलमपि विहायाहाय / 35 / 102 रागाद्यास्रवरोधतो 133 / 302 | समस्तमित्येवमपास्य कर्म | 229 / 551 | रागोद्गारमहारसेन सकलं | 163 | 378 | संन्यस्यन्निजबुद्धिपूर्वमनिशं | 116 / / रुन्धन् बन्धं नवमिति 162 / 364 | संन्यस्तव्यमिदं समस्तमपि | 109 / 257 सम्पद्यते संवर एष 129 | 299 लोक: कर्मततोऽस्तु 165 / 376 | सम्यग्दृष्टय एव साहसमिदं | 154 / 350 लोक: शाश्वत एक एष | 155 / 351 | सम्यग्दृष्टि: स्वयमयमहं / 137 | सम्यग्दृष्टेर्भवति नियतं |136 / / वर्णादिसामग्रयमिदं विदन्त / | 39 | 121 | सर्वतः स्वरसनिर्भरभाव 30 / 79 वर्णाद्या वा रागमोहादयो वा | 37 | 109 | सर्वत्राध्यवसानमेवमखिलं | 173 / 403 वर्णाद्यैः सहितस्तथा | 42 | 125 | सर्वद्रव्यमयं प्रपद्य 253 601 | वस्तु चैकमिह नान्यवस्तुनो | 213 / 501 | सर्वस्यामेव जीवन्त्यां 117 | 273 विकल्पक: परं कर्ता | 231 | सर्वं सदैव नियतं |168 |385 विगलन्तु कर्मविषतरु- | 230 | 552 | सिद्धान्तोऽयमुदात्तचित्त- | 185 / / 442 / विजहति न हि सत्तां 276 स्थितेति जीवस्य 202 निरन्तराया विरम किमपरेणाकार्य स्थितेत्यविघ्ना खलु 64 | 198 पुद्गलस्य विश्रान्त: परभावभावकलना- | 258 605 | स्याद्वादकौशलसुनिश्चल- | 267 618 विश्वाद्विभक्तोऽपि हि | 172 | 399 | स्याद्वाददीपितलसन्महसि / 269 | 620 / विश्वं ज्ञानमिति प्रतl | 249 / 598 | स्वशक्तिसंसूचितवस्तुत्वत्त्वै | 278 | 627 118 | वृत्तं कर्मस्वभावेन वृत्तं ज्ञानस्वभावेन वृत्त्यंशभेदतोऽत्यन्तं वेद्यवेदकविभावचलत्वाद | व्यतिरिक्त परद्रव्यादेवं | व्यवहरणनयः स्याद्यद्यपि | 107 | 251 | स्वक्षेत्रस्थितये पृथग्विध- | 255 / 603 | | 106 / 251 | स्वेच्छासमुच्छलदनल्प- / 225 | 207 | 490 | स्वं रूपं किल वस्तुनो | 158 353 | | 147 | 338 | ह |267 576 | हेतुस्वभावानुभवाश्रयाणां | 102 | 239 / / 5 / 28 / Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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