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तइयं अज्झयणं
तीसरा अध्याय सारांश साधना के मार्ग पर चलते हुए साधक गृहस्थों पर अनावश्यक भार न डाले और गृहस्थ को कम से कम परेशानी हो इस तरह से जिये । संत का जीवन एक हल्के-फुल्के सुगंधित हवा के झोंके के समान हो। अपने आप में साधक संयत और संतुष्ट होता है, निग्रंथ और ऋजुदर्शी होता है। ऋजुदर्शी का अर्थ है जो अत्यंत सरल है। भीतर से भी और बाहर से भी। इसी सरलता के कारण इस किनारे से उस किनारे तक पूरी तरह से देख लेता है। वह स्वयं में किसी तरह से उलझा नहीं है। उसकी सोच में, उसकी भावनाओं में उसके कर्म में उलझन नहीं है। बाहर की दुनिया को भी वह इतनी सरलता से आर-पार देख लेता है वह ऋजुदर्शी संत होता है।
खुड्डियायारकहा संजमे सुट्रिअप्पामं विप्पमुक्काण ताइणं । तेसिमेयमणाइण्णं निग्गंथाण महेसिणं ।। १ ।। उद्देसियं कीयगडं नियागमभिहडाणि य। राइभत्ते सिणामे य गंधमल्ले य वीयणे ।। २ ।। सन्निही गिहिमत्ते य रायपिंडे किमिच्छए। संबाहणा दंतपहोयणा य संपुच्छणा देहपलोयणा य ।। ३ ।। अट्ठावए य नाली य छत्तस्स य धारणट्ठाए। तेगिच्छं पाणहा पाए समारंभं च जोइणो ।।४।। सेज्जायरपिंडं च आसंदीपलियंकए। गिहंतरनिसेज्जा य गायस्सुव्वट्टणाणि य ।। ५ ।। गिहिणो वेयावडियं जा य आजीववित्तिया। तत्तानिव्वुडभोइत्तं आउरस्सरणाणि य॥६॥
SAMARPAN - DEDICATION
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