Book Title: Samansuttam Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 5
________________ आचारांग आदि आगम-ग्रन्थों एवं प्राकृत साहित्य के हार्द को समझने में काफी सहयोग मिला है। आशा है समणसुत्तं-चयनिका का यह परिवर्तित द्वितीय संस्करण भी इसी प्रकार उपयोगी सिद्ध होगा। इसी क्रम में शीघ्र ही उत्तराध्ययन-चयनिका, सूत्र-कृतांग-चयनिका, परमात्मप्रकाश व योगसार-चयनिका, समयसार-चयनिका भी प्रकाशित की जावेंगी। प्राकृत भारती अकादमी का विश्वास है कि चयनिकाओं के प्रकाशन से समाज में प्राचीन उच्च साहित्य के अध्ययन में रुचि उत्पन्न हो सकेगी और हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़े रहने की प्रेरणा मिलेगी। पुस्तक की सुन्दर छपाई के लिये हम एम. एल.प्रिन्टर्स, जोधपुर को धन्यवाद प्रदान करते हैं। पंचम संस्करण समणसुत्तं-चयनिका जैन धर्म के एक आधारभूत ग्रन्थ के रूप में वास्तव में स्थापित हो चुकी है, यह बात यह पंचम संस्करण स्वत: सिद्ध करता है। हम अध्येताओं तथा सामान्य पाठकों का आभार प्रकट करते हुए इसे उन्हें समर्पित करते हैं । म. विनयसागर म. विनयसागर देवेन्द्रराज मेहता पारसमल भंसाली अध्यक्ष, . . नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर प्राकृत भारती अकादमी संस्थापक, प्राकृत भारती अकादमी जयपुर जयपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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