Book Title: Samansuttam Chayanika Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय प्राकृत भारती अकादमी के ३३वें पुष्प के रूप में समणसुत्तंचयनिका का द्वितीय संस्करण अध्येताओं के कर-कमलों में समर्पित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। एक प्रश्न बार-बार पूछा जाता रहा है कि क्या कोई एक आधारभूत पुस्तक है जिससे जैन-दर्शन /धर्म की प्रामाणिक जानकारी प्राप्त की जा सके ?श्रमण भगवान् महावीर के २५सौवें निर्वाण-महोत्सव के वर्ष में इस प्रश्न का समाधान खोजा गया। राष्ट्रसंत विनोबाजी की अन्त:प्रेरणा से एक सर्वमान्य ग्रन्थ समणसुत्तं तैयार हुआ। नि:संदेह इससे जैन दर्शन-धर्म की प्रामाणिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यह ग्रन्थ जैन-धर्म के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान कराने में सक्षम है। इस ग्रंथ का सार सर्वसाधारण के लिये सुलभ हो सके, समझ सके, इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर दर्शन के प्रोफेसर डॉ० कमलचन्द सोगाणी ने समणसुत्तं-चयनिका तैयार की है। इसमें हिन्दी अनुवाद के साथ १७० गाथाओं का अंग्रेजी अनुवाद भी सम्मिलित है। यह अंग्रेजी अनुवाद प्रथम बार ही किया गया है। ___हमें यह कहते हुए हर्ष है कि प्राकृत भारती से डॉ० सोगाणी द्वारा सम्पादित आचारांग-चयनिका का प्रथम व द्वितीय संस्करण, दशवैकालिक-चयनिका, अष्टपाहुड-चयनिका, गीता-चयनिका, वाक्पतिराज की लोकानुभूति एवं वजालग्ग मे जीवन-मूल्य प्रकाशित की जा चुकी हैं। इन सफल प्रकाशनों से प्राकृत भाषा के अध्येताओं को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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