Book Title: Samaj Sangathan
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 5
________________ समाज-संगठन संगठन की ज़रूरत का वाह्यदृष्टि से विचार --- अब देखना यह है कि विवाहद्वारा संतान उत्पन्न करके समाज संगठनकी ज़रूरत क्यों पैदा होती है ? जरूरत इसलिए होती है कि यह जीवन एक प्रकारका 'युद्ध' है-लौकिक और पारलौकिक या अन्तरंग और बहिरंग दोनों ही दृष्टियोंसे इसे युद्ध समझना चाहिये - और यह संसार 'युद्धक्षेत्र' है । युद्ध में जिस प्रकार अनेक शक्तियोंका मुकाबिला करनेके लिये सैन्य-संगठनकी जरूरत होती है उसी प्रकार जीवन- युद्ध में अनेक आपदाओं से पार पानेके लिए समाज संगठन की आवश्यकता है। हम चारों ओर से इस संसार में अपनी पत्नियों द्वारा घिरे हुए हैं कि यदि हमारे पास उनसे बचने का कोई साधन नहीं है तो हम एक दिन क्या, घड़ी भर भी जीवित नहीं रह सकते । बाह्य जगत पर दृष्टि डालने से मालूम होता है कि एक शक्ति बड़ी सरगर्मी के साथ दूसरी शक्तिपर अपना स्वत्व (स्वामित्व ) और प्राबल्य स्थापित करना चाहती है, अपने स्वार्थ के सामने दूसरी को बिलकुल तुच्छ और नाचीज समझती है, चैतन्य होते हुए भी उससे जड़ - जैसा व्यवहार करती है और यदि अवसर मिले तो उसे कुचल डालती है - हड़प कर जाती है। रात दिन प्रायः इस प्रकारको घटनाएँ देखने में आती हैं। निर्बलों पर खूब अत्याचार होते हैं। न्यायालय खुले हुए हैं, परन्तु वे सब उनके लिये व्यर्थ हैं । उनकी कोई सुनाई नहीं होती। इसलिए कि, उनका कोई रक्षक या सहायक नहीं है, उनमें कौटुम्बिक बल नहीं है, जिस ससाज के वे अंग हैं वह सुव्यवस्थित नहीं हैं, पैसा उनके पास नहीं है' उन्हें कोई साक्षी उपलब्ध नहीं होता कोई गवाह मयस्सर नहीं आता । जो लोग प्रत्यक्ष उन पर होते हुए अत्याचारोंको देखते हैं वे भी अत्याचारीके भय से या अपने स्वार्थमें कुछ बाधा पड़नेके भय से बेचारे

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