________________ समाज-संगठन 16 कार्य यथेष्ट रीति से करने लगते हैं-उस समय परस्पर जो मैथुन किया जाता है उससे बलवान् सन्तान उत्पन्न होतो है ; और इससे कम अवस्था में जो मैथुन किया जाता है उससे रोगी, अल्पायु (शीघ्र मर जाने वाली) या दीन दुःखित और भाग्यहीन सन्तान पैदा होती है अथवागर्भ ही नहीं रहता। वाग्भट के वे वचन इस प्रकार हैं: पूर्णषोडशवर्षी स्त्री पूर्णविशनसंगता। शुद्ध गर्भाशये मार्गे रक्त शुक्रऽनिले हृदि / वीर्य वंतं सुतं सूते ततो न्यूनाब्दयोः पुनः / रोग्यल्पायुरधन्यो वा गभौं भवति नैव वा / / इनसे साफ जाहिर है कि पुरूष का 20 वर्ष से और स्त्री का 16 बर्ष से कम उम्र में विवाह न होना चाहिए। ऐसा कम उम का विवाह बहुत ही हानिकारक होता है और समाज के संगठन को बिगाड़ता है। छोटी उम में विवाह करके बाद को जो 'गौना' या 'द्विरागमन' की प्रथा है वह बिलकुल विवाह के उद्देश्य एवं समाजसंगठनका घात करने वाली पृथा है-सोते हुए सिंहको जगाकर उसे थपकी देने के समान है। किसी भी माननीय प्राचीन जैनशास्त्र में उसका उल्लेख या विधान नहीं है और उसके द्वारा व्यर्थ ही दो व्यक्तियोंका जीवन खतरे में (जोखम) में डाला जाता है। इसलिए समाज-संगठनके इच्छुक बुद्धिमानों द्वारा वह प्रथा कदापि आदरणीय नहीं हो सकती। उपसंहार ___यदि सब सूत्र रूप से समाज संगठन और उसकी सिद्धि का रहस्य है। आशा है सहृदय पाठक एवम उत्साही नवयुवक इसका ठीक तौरसे अनुभव करते हुए समाजसंगठनके कार्यमें अग्रसर होंगे अपने अपने कर्तव्यों का दृढ़ता के साथ पालन करेंगे। और उसके द्वारा समाज में सुख शांति का वातावरण प्रस्तुत करके अपने तथा दूसरों के उत्थान और विकास का मार्ग प्रशस्त बनाएंगे। इत्यलम् / जुगलकिशोर मुख्तार (सरसावां) जिला सहारनपुर