Book Title: Samadhi aur Sallekhana
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Digambar Jain Vidwatparishad Trust

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Page 2
________________ : २ हजार प्रथम संस्करण (१५ अगस्त, २००४) द्वितीय संस्करण (संशोधित एवं संबर्द्धित संस्करण ) (३१ मार्च महावीर जयन्ती) : ३हजार प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करने दाले दातारों की सूची आत्मकथ्य समाधि है जीवन जीने की कला क्रोधादि मानसिक विकारों का नाम है 'आधि', शारीरिक रोग का दूसरा नाम है 'व्याधि'। पर में कर्तृत्व बुद्धि का बोझ है 'उपाधि', उपर्युक्त तीनों विकृतियों से रहित - शुद्धात्मस्वरूप में स्थिरता का नाम है 'समाधि'। समाधि की समझ से होती है आत्मा की प्रसिद्धि, समाधि की साधना से होती है सद्गुणों में अभिवृद्धि । और बढ़ती है आत्म शक्तियों की समृद्धि, जो पुनः-पुनः पढ़ेगा इसे उसके आत्मा में होगी विशुद्धिऔर होगी सुख-शान्ति तथा गुणों में गुणात्मक वृद्धि। श्री शान्तिलालजी अलवरवाले जयपुर ५००.०० श्री मूलचन्दजी छाबड़ा, जयपुर ५००.०० श्रीमती कमलाबाई भारिल्ल, जयपुर ५००.०० श्रीमती कुसुम विमलकुमारजी 'नीरू केमिकल्स', दिल्ली २०१.०० श्री शान्तिनाथजी सोनाज, अकलूज २०१.०० मल्य : पाँच रुपा श्रीमती कान्ताबाई पूनमचन्दजी छाबड़ा, इन्दौर २०१.०० श्रीमती नीलू राजेशकुमार काला इन्दौर २०१.०० ब्र. कुसुमताई पाटील, कुम्भौज २०१.०० श्रीमती पतासीदेवी इन्द्रचन्दजी पाटनी, लाडनूं श्रीमती रश्मिदेवी वीरेशजी कासलीवाल, सूरत २०१.०० श्रीमती पानादेवी मोहनलालजी गोहाटी श्रीमती हीराबाई चुन्नीलाल जैन पारमार्थिक ट्रस्ट, जयपुर १०१.०० मुद्रक : प्रिन्टोमैटिक्स कुल राशि ३,१०९.०० स्टेशन रोड़, दुर्गापुरा, जयपुर-३०२०१८ २०१.०० 'सल्लेखना' है मृत्यु महोत्सव का जलजला, इससे होता है आत्मा का भला। बन्धु! इसे न समझो बला, अन्यथा यों हीचलता रहेगा संसरण का सिलसिला ।। अब तक संयोगों के राग में यों ही गया छला, मैं अकेला ही आया था और अब अकेला ही चला। समाधि है जीवन जीने की कला, इसी से पहुँचते हैं सिद्ध शिला। - रतनचन्द भारिल्ल *समाधि-साधना और सिद्धि का नया रूप

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