Book Title: Sakaratmak Ahimsa Author(s): Kanhaiyalal Lodha Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 7
________________ प्रकाशकीय प्राकृतभारती पुष्प 106 के रूप में प्रस्तुत 'सकारात्मक अहिंसा' पुस्तक का दो खण्डों में प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर और सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर का संयुक्त प्रकाशन करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता है। 'अहिंसा' का सामान्य अर्थ है हिंसा का अभाव । जैन धर्म, दर्शन व संस्कृति में यह शब्द अपने सामान्य अर्थ के साथ विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। किन्तु समय-प्रवाह जैसे अन्य बातों में परिवर्तन ले आता है, वैसे ही जैनों के इस विशिष्ट शब्द के विशिष्ट अर्थों में भी परिवर्तन आए। कुछ महत् बातें गौण हो गईं और गौण बातें महत् हो गईं। धीरे-धीरे लगता है जैन अहिंसा की आत्मा मर गई और वह जीवन्तता-विहीन शुष्क अवधारणा बनकर रह गई। सम्भवतः यही कारण है कि जन-सामान्य में अहिंसा के सम्बन्ध में कई भ्रान्तियां फैल गईं । इनमें दो भ्रान्तियां मुख्य हैं । एक तो यह कि अहिंसा का अर्थ मात्र प्राण-हनन न करना है या अधिक से अधिक प्राणियों को पीड़ा न पहुंचाना है । दूसरी भ्रांति यह है कि अहिंसा एक विशुद्ध नकारात्मक या निषेधात्मक अथवा निवृत्तिमूलक अवधारणा है। वस्तुतः ये भ्रान्तियां एकांगी दृष्टिकोण की देन हैं और विडम्बना यह है कि यह दृष्टिकोण उन लोगों ने अपनाया है जिन्होंने संसार को अनैकान्तिक दृष्टिकोण की शिक्षा दी। ___ इन भ्रान्तियों को दूर करने के प्रयास जैसी लगन से होने चाहिए थे वैसे नहीं हो पाये । आज जब सारा विश्व सिमटकर एक गांव-सा बन रहा है और उन जीवन-पद्धतियों की खोज हो रही है, जो समाज के हर स्तर पर शांति स्थापित कर सकें, अहिंसा सम्बन्धी इन भ्रान्तियों को दूर करना और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है । भगवान महावीर के कालजयी शब्द थे-जैसे आपको दुःख प्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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