Book Title: Sakaratmak Ahimsa Author(s): Kanhaiyalal Lodha Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 9
________________ प्रकाशकीय [ vii से अहिंसा के इस सकारात्मक रूप की स्थापना करने के अपने इस प्रयास से ही लेखक ने सन्तोष नहीं कर लिया, अपितु अपने कथ्य के. अंतिम अध्याय में उन्होंने सकारात्मक अहिंसा पर उठाई गई आपत्तियों का निराकरण भी किया है। इसके अतिरिक्त पुस्तक के द्वितीय खण्ड के रूप में उन्होंने इसी सन्दर्भ में अन्यान्य मनीषियों के महत्त्वपूर्ण लेख भी संकलित किये हैं। हमें विश्वास है कि यह पुस्तक अहिंसा को उसकी सम्पूर्णता में व्यापक बनाने की ओर एक महत्त्वपूर्ण प्रयास का रूप धारण करेगी। ___ जैन और जैनेतर दर्शनों के लब्ध-प्रतिष्ठित विद्वान् डा. सागर मल जी जैन ने विषय की गम्भीरता और वर्तमान विषम काल में उसकी उपादेयता के अनुरूप विचारोत्तेजक और प्रेरक भूमिका लिखी है, जिससे पुस्तक का महत्त्व और भी बढ़ गया है । हम उनके तथा उन सभी विद्वानों के भी आभारी हैं जिनके लेख इस पुस्तक में सम्मिलित किये गये हैं। विशेषतः डॉ. धर्मचन्द जैन, जोधपुर ने जिस योग्यता और लगन के साथ इस पुस्तक का सम्पादन-संशोधन कर मुद्रण-व्यवस्था की है उसके लिये वे धन्यवाद के पात्र हैं। हमें आशा है हमारे पाठक इस संयुक्त प्रकाशन को पढ़कर सकारात्मक अहिंसा को जीवन में अपनाने को प्रेरित होंगे। म. विनयसागर देवेन्द्रराज मेहता निदेशक सचिव प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर डॉ. सम्पतसिंह भांडावत . विमल चन्द डागा अध्यक्ष मन्त्री सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल, जयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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