Book Title: Sahityik Avdan
Author(s): Bhagchandra Jain
Publisher: Z_Bharatiya_Sanskruti_me_Jain_Dharma_ka_Aavdan_002591.pdf

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Page 16
________________ ५० कर सकते हैं — () आगम साहित्य (ii) आगमिक व्याख्या साहित्य (iii) कर्मसाहित्य (iv) सिद्धान्त साहित्य (v) आचार साहित्य (vi) विधि-विधान और भक्ति साहित्य (vii) कथा साहित्य, और (viii) लाक्षणिक साहित्य | १. आगम साहित्य प्राकृत 'जैनागम साहित्य की दो परम्पराओं से हम सुपरिचित है ही । दिगम् परम्परा तो उसे लुप्त मानती है, परन्तु श्वेताम्बर परम्परा में उसे अंग, उपार मूलसूत्र, छेदसूत्र और प्रकीर्णक के रूप में विभक्त किया गया है। उनका संक्षि परिचय इस प्रकार है। इन द्वादशांगों की रचना पूर्व ग्रन्थ परम्परा पर आधारि रही है। अंग साहित्य अंग साहित्य के पूर्वोक्त बारह भेद हैं जिनके कुल पदों का योग ४१५०२०० है । इनकी उल्लिखित विषय सामग्री और उपलब्ध विषय सामग्री में ब अन्तर है । १ १. आचारांग यह दो श्रुतस्कन्धों में विभक्त है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में सत्थ परिण्णा अ नौ अध्ययन हैं और द्वितीय श्रुतस्कन्ध में पांच । प्रथम श्रुतस्कन्ध में पाणिप साधुओं का कोई उल्लेख भले ही न हो पर उसका झुकाव अचेलकता की अ अवश्य है। अत: यह भाग प्राचीनतर है। पाणिपात्री साधुओं के अस्तित्व उत्तरकालीन विकास का परिणाम भी नहीं कहा जा सकता। द्वितीय श्रुतस्क चूलिका के रूप में लिखा गया है जिनकी संख्या पांच है। चार चूलिकायें आचार १. देखिये, भ, महावीर और उनका चिन्तन, डॉ. भागचन्द्र जैन, अध्याय : Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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