Book Title: Sahityik Avdan
Author(s): Bhagchandra Jain
Publisher: Z_Bharatiya_Sanskruti_me_Jain_Dharma_ka_Aavdan_002591.pdf

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Page 40
________________ १२८५० " १८६१६ " ३८०० " सूत्रकृतांगविवरण शान्तिसूरि (११वीं शती) उत्तराध्ययनटीका द्रोणसूरि (११-१२वीं शती) ओघनियुक्ति वृत्ति अभयदेव (१२वीं शती) स्थानांग वृत्ति । १४२५० " समवायांग वृत्ति ३२७५ " व्याख्या प्रज्ञप्ति वृत्ति ज्ञाता धर्मकथा विवरण उपासक दशांग वृत्ति अन्त:कृद्दशांगवृत्ति अनुत्तरौपपातिक दशावृत्ति प्रश्न व्याकरण वृति विपाक वृत्ति औपपातिकवृत्ति मलयगिरि(११-१२वीं शती) भगवतीसूत्र-द्वितीय शतकवृत्ति ३७५० " राजप्रश्नोपांगटीका ३७०० जीवाभिगमोपांगटीका १६००० प्रज्ञापनोपांगटीका चन्द्रप्रज्ञप्त्युपांगटीका ९५०० सूर्यप्रज्ञप्तिटीका ९५०० नन्दसूत्रटीका ७७३२ व्यवहारसूत्रवृत्ति ३४००० बृहत्पकल्पपीठिकावृत्ति (अपूर्ण) ४६०० आवश्यकवृत्ति (अपूर्ण) १८००० पिण्डनियुक्तिटीका ६७०० ज्योतिष्करण्डकटीका धर्मसंग्रहणीवृत्ति कर्मप्रकृतिवृत्ति पंचसंग्रहवृत्ति १८८५० षडशीतिवृत्ति १६००० ८००० २००० " Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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