Book Title: Sagarmal Jain Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 5
________________ की रुचि सदैव जीवन्त रही, अतः आपने सन् 1957 में इण्टर कामर्स की परीक्षा दे ही दी और इस परीक्षा में भी उच्च द्वितीय श्रेणी के अंक प्राप्त किये। यह आपका सद्भाग्य ही कहा जायेगा कि चाहे व्यवसाय का क्षेत्र हो या अध्ययन का, असफलता और निराशा का मुख आपने कभी नहीं देखा, किन्तु आगे अध्ययन का क्रम पुनः खण्डित हो गया, क्योंकि उस समय शाजापुर नगर में कोई महाविद्यालय नहीं था और बी.ए. की परीक्षा स्वाध्यायी छात्र के रूप में नहीं दी जा सकती थी। अतः, एक बार पुनः आपको व्यवसाय के क्षेत्र में ही केन्द्रित होना पड़ा, किन्तु भाग्यवानों के लिए कहीं-न-कहीं कोई द्वार उद्घाटित हो ही जाता है। उस समय म.प्र. शासन ने यह नियम प्रसारित किया कि 25,000 रु. की स्थायी राशि बैंक में जमा करके कोई भी संस्था महाविद्यालय का संचालन कर सकती है, अतः आपने तत्कालीन विधायक श्री प्रताप भाई से मिलकर एक महाविद्यालय खुलवाने का प्रयत्न किया और विभिन्न स्रोतों से धनराशि की व्यवस्था करके बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' महाविद्यालय की स्थापना की और स्वयं भी उसमें प्रवेश ले लिया। व्यावसायिक-दायित्व से जुड़े होने के कारण आप अधिक नियमित नहीं रह सके, फिर भी बी.ए. परीक्षा में बैठने का अवसर तो प्राप्त हो ही गया। इस महाविद्यालय के माध्यम से सन् 1961 में बी.ए. की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। इस समय आप पर व्यावसायिक, पारिवारिक और सामाजिक दायित्व इतना अधिक था कि चाहकर भी अध्ययन के लिए आप अधिक समय नहीं दे पाते थे, अतः अंकों का प्रतिशत बहुत उत्साहजनक नहीं रहा, तो भी शाजापुर से जो छात्र इस परीक्षा में बैठे थे, उनमें आपके अंक सर्वाधिक थे। आपके तत्कालीन साथियों में श्री मनोहरलाल जैन एवं आपके ममेरे भाई रखबचन्द्र प्रमुख थे। परिवार और समाज गृही-जीवन में सन् 1951 में आपको प्रथम पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, किन्तु दुर्दैव से वह अधिक समय तक जीवित नहीं रह सका। अगस्त 1952 में आपके द्वितीय पुत्र नरेन्द्रकुमार का जन्म हुआ। सन् 1954 में पुत्री कु. शोभा का और 1957 में पुत्र पीयूषकुमार का जन्म हुआ। बढ़ता परिवार और पिताजी की अस्वस्थता तथा छोटे भाई-बहनों का अध्ययन-इन सब कारणों से मात्र पच्चीस वर्ष की अल्पवय में ही आप एक के बाद एक जिम्मेदारियों के बोझ से दबते ही गये। उधर, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में भी आपकी प्रतिभा और व्यवहार के कारण आप पर सदैव एक के बाद दूसरी जिम्मेदारी डाली जाती रही। इसी अवधि में आपको माधव रजत जयंती वाचनालय, शाजापुर का सचिव, हिन्दी साहित्य डॉ. सागरमल जैन - एक परिचय : 4 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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