Book Title: Sagarmal Jain Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 48
________________ अध्ययन, अध्यापन के लिये फर्नीचर एवं कम्प्यूटर आदि की समुचित व्यवस्था है। साथ ही आचार्य श्री जयंतसेन सूरीश्वरजी की प्रेरणा से साधुओं के लिये आराधना भवन का निर्माण भी हो चुका है। राजगंगा ग्रन्थागारः संस्था का राजगंगा ग्रंथागार विद्यापीठ के परिसर में ही स्थित हैं, जिसमें जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्म एवं दर्शन तथा प्राकृत, पाली और संस्कृत के लगभग 12,000 दुर्लभ ग्रन्थ उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त 700 हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ भी संरक्षित है, जो 15वीं शती से 20वीं शती तक ही है। लगभग 40 पत्र-पत्रिकाएँ भी नियमित रुप से विद्यापीछ में आती है। शोधकार्य के मार्गदर्शन एवं शिक्षण हेतु विद्यापीठ के संस्थापक-निदेशक डॉ. सागरमलजी जैन का सतत् सानिध्य प्राप्त है। विद्यापीठ परिसर में साधु-साध्वियों, शोधार्थियों और मुमुक्षुजनों के लिये अध्ययन, अध्यापन के साथ-साथ निवास, भोजन आदि की भी उत्तम व्यवस्था है। विद्यापीठ की उपलब्धियाँ वर्ष 1997-2010 तक स्नातकोत्तर अध्यापन: प्राच्य विद्यापीठ के परिसर, समृद्ध राजगंगा ग्रंथागार और मार्गदर्शन एवं शिक्षण हेत डॉ. सागरमलजी जैन का सानिध्य-इस अधोसंरचना रुपी त्रिवेणी के फलस्वरुप शाजापुर जिले में भारतीय विद्याओं के अध्ययन के लिये प्रेरक वातावरण निर्मित हुआ है। इसका लाभ लेते हुए जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूँ (राज.) द्वारा संचालित दूरस्थ शिक्षा प्राठ्यक्रमों के अंतर्गत जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म-दर्शन तथा जीवनविज्ञान, प्रेक्षाध्यान एवं योग विषय में शाजापुर नगर के लगभग 20 विद्यार्थियों ने प्रथम एवं उच्च द्वितीय श्रेणी में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। मात्रा यहीं नहीं विद्यापीठ की छात्रा श्रीमती मीनल आशीष जैन ने जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं की वर्ष 2002 की एम.ए. जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म-दर्शन की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर प्रावीण्य सूची में सम्पूर्ण भारत में प्रथम स्थान प्राप्त करने का गौरव हासिल किया है। पी-एच.डी उपाधि डॉ. सागरमलजी जैन सा. के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में तथा राजगंगा ग्रन्थागार का लाभ लेकर शोधार्थियों द्वारा कियेगयेशोधकार्य संबंधी उपलब्धियों का विवरण इस प्रकार है - स.क्र.शोधार्थी का नाम | शोधप्रबंध | विश्व विद्यालय का नाम का विषय |जिसके अन्तर्गतपंजीकरणहुआ है 1 साध्वी विनीतप्रज्ञाश्रीजी | उत्तराध्ययन: | गुजरात वि.वि. अहमदाबाद (औपचारिक) एकअनुशीलन साध्वी उदितप्रभाजी जैनधर्म में ध्यान की जैन विश्वभारती, लाडनूं (राज) की विकासयात्रा | (महावीरसेमहायज्ञ तक) डॉ. सागरमल जैन- एक परिचय : 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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