Book Title: Sagarmal Jain Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 19
________________ 1991 11991 1992 15/ डॉ.(श्रीमती)संगीता झा धर्म और दर्शन के क्षेत्र में आचार्य हरिभद्र का अवदान |1990 (का.हि.वि.वि., वाराणसी) 16/ डॉ. धनंजय मिश्र हरिभद्र का योग के क्षेत्र में योगदान 11991 | (का.हि.वि.वि., वाराणसी) 17 डॉ.(श्रीमती)गीता सिंह | औपनिषदिक साहित्य में श्रमण परम्परा के तत्त्व (का.हि.वि.वि., वाराणसी) 18/ डॉ.(श्रीमती अर्चना |भाषा दर्शन को जैन दार्शनिकों का योगदान |पाण्डेय | (का.हि.वि.वि., वाराणसी) 19/ डॉ. (श्रीमती) मंजुला जैन दार्शनिक ग्रन्थों में ईश्वर कर्तृत्व की समालोचना |1992 भट्टाचार्य (का.हि.वि.वि., वाराणसी) 20/ डॉ. रवीन्द्रकुमार |शीलदूत एवं संस्कृत दूतकाव्यों का तुलनात्मक अध्ययन |1992 (का.हि.वि.वि., वाराणसी) 21/ डॉ.के.वी.एस.पी.बी. वैखानस जैन योग का तुलनात्मक अध्ययन आचार्युलु | (का.हि.वि.वि., वाराणसी) 22 डॉ. जितेन्द्र बी.शाह द्वादशार नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन 1992 (का.हि.वि.वि., वाराणसी) 23 श्री असीमकुमार मिश्र | ऐतिहासिक अध्ययन के जैन स्रोत और उनकी प्रामाणिकताः एक अध्ययन (का.हि.वि.वि., वाराणसी) 24/ श्री मणिनाथ मिश्र जैन चम्पू काव्यों का समीक्षात्मक अध्ययन 1997 (का.हि.वि.वि., वाराणसी) (का.हि.वि.वि., वाराणसी) 25| श्रीमती कंचनसिंह पार्वाभ्युदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन 1997 (का.हि.वि.वि., वाराणसी) 26| साध्वी उदितप्रभाश्रीजी जैनधर्म में ध्यान की विकास यात्रा जैन विश्वभारती वि.वि. (महावीर से महाप्रज्ञ तक) .. लाडनूं (राज.) 27 साध्वी दर्शनकलाश्रीजी जैन साहित्य में गुणस्थान की। जैन विश्वभारती वि.वि. अवधारणा लाडनूं (राज.) 28| साध्वी प्रियलताश्रीजी जैनधर्म में त्रिविध आत्मा की | जैन विश्वभारती वि.वि. अवधारणा लाडनूं (राज.) 29/ साध्वी प्रियवंदनाश्रीजी जैनधर्म में समत्वयोग जैन विश्वभारती वि.वि. लाडनूं (राज.) 30| श्रीमती विजयागोसावी जैन योग और पातंजल योगसूत्रः | जैन विश्वभारती वि.वि. एक अध्ययन लाडनूँ (राज.) 1996 (मुंबई) डॉ. सागरमल जैन- एक परिचय : 18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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