Book Title: Sachitra Tirthankar Charitra
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 74
________________ सिंह गज वृषभ लक्ष्मी पुष्पमाला चन्द्र सूर्य ऋषभ अजित सम्भव Padmasen of Mahapuri town in Dhatakikhand and had descended into the queen's womb from the Mahardhik dimension of gods. During her pregnancy the queen radiated a soothing glow. Her temperament also became congenial, kind, and generous. When the child was born the whole atmosphere was also filled with a soothing glow. Inspired by this spread of purity, the king named his new born son as Vimal (pure / untarnished). अभिनन्दन। In due course, prince Vimal Kumar became young, was married, and then ascended the throne. After a long and successful reign he became a Shraman alongwith one thousand other kings and princes on the fourth day of the bright half of the month of Magh. After two years of spiritual practices he attained omniscience and established the religious ford. Merak Prativasudev, Svayambhu Vasudev, and Bhadra Baldev were his contemporaries. Bhagavan Vimalnath got Nirvana at Sammetshikhar on the seventh day of the dark half of the month of Ashadh. अयोध्या के राजा सिंहसेन की रानी सुयशादेवी ने वैशाख कृष्णा १३ की रात्रि में एक महान् भाग्यशाली पुत्र को जन्म दिया। आपके जन्म- प्रभाव से राजा सिंहसेन को अपना बल, वैभव असीम अनन्त गुना बढ़ा प्रतीत होता था । माता ने भी एक विशालं रत्नमाला का स्वप्न देखा जिसका ओर-छोर ( अन्त) कहीं नज़र नहीं आता था। इस कारण बालक का नाम "अनन्त " रखा गया । यौवन वय में विवाह हुआ और फिर राज्याभिषेक कर पिता सिंहसेन दीक्षित हो गये । विमल १४. भगवान अनन्तनाथ अनेक वर्षों तक राज्य एवं प्रजा का पालन करते हुए अनन्तनाथ के मन में राज्य त्यागकर दीक्षा का संकल्प जगा। तभी नव लोकान्तिक देव आये और वन्दना कर बोले - “प्रभु आपका संकल्प महान् है ! संसार को भी इस वैराग्य मार्ग का दर्शन कराइए और धर्मतीर्थ का प्रवर्तन कीजिए। " Illustrated Tirthankar Charitra सुमति आपने एक हजार राजाओं के साथ सांसारिक भोग वैभव त्यागकर दीक्षा ग्रहण की। तीन वर्ष के छद्यथ काल पश्चात् अशोक वृक्ष के नीचे वैशाख कृष्णा चतुर्दशी को केवलज्ञान प्राप्त हुआ । अनन्त Jain Education International 2010_US आपने प्रथम देशना में जीव-अजीव आदि तत्त्वों पर विशद प्रकाश डाला। आपके गण में ५० गणधर हुए जिनमें प्रथम गणधर का नाम था - यश । चैत्र शुक्ला 'पंचमी को पुष्य नक्षत्र में सम्मेदशिखर पर आपका निर्वाण हुआ। आपके तीर्थकाल में पुरुषोत्तम वासुदेव तथा सुप्रभ नामक बलदेव हुए। पद्मप्रभ धर्म ( ५८ ) शान्ति @ For Private & Personal Use Only कुन्धु सचित्र तीर्थंकर चरित्र अर www.jainelibrary.org

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