Book Title: Sachitra Tirthankar Charitra
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 10
________________ ऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन सुमति पद्मप्रभ सिंह गज वृषभ श्री रतनलाल दोशी ने त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र के आधार पर तीर्थंकर चरित्र को तीन भागों में हिन्दी भाषा में सम्पादित किया है। जैन इतिहास के मर्मज्ञ आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज ने जैन धर्म इतिहास के प्रथम भाग में चौबीस तीर्थंकरों का जीवन चरित्र बड़े प्रामाणिक तथ्यों एवं समीक्षा के साथ लिखा है, जो अपने आप में एक विशिष्ट प्रयास है। आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी द्वारा लिखित चार तीर्थंकरों पर चार शोध ग्रन्थ तथा उपाध्याय श्री केवल मुनि जी द्वारा लिखित "भगवान महावीर" भी इस विषय में पठनीय ग्रन्थ है। ___ इन्हीं सब उपलब्ध ग्रन्थों का अनुसंधान/परिशीलन करते हुए हमने संक्षेप में, किन्तु रुचिकर शैली में तीर्थंकर चरित्र लिखा है। परिशिष्ट में भी तीर्थंकरों सम्बन्धी अनेक दुर्लभ ज्ञातव्य तथ्य संकलित कर प्रस्तुत किये गये हैं। परिशिष्ट लेखन में उक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त 'वीतराग वन्दना' विशेषांक भी सहयोगी बना है। ____ मैं उक्त सभी विद्वान् लेखकों, सम्पादकों तथा प्रकाशकों के प्रति कृतज्ञ हूँ जिनके परिश्रम, ज्ञान, अनुभव का लाभ सहज ही प्राप्त हुआ है। प्रस्तुत संस्करण की विशेषता प्राचीन ग्रन्थों को आधार बनाकर लिखा गया यह तीर्थकर चरित्र अपने आप में कुछ खास विशेषताएँ भी रखता है १. सबसे मुख्य विशेषता है-तीर्थंकरों के जीवन प्रंसगों से सम्बन्धित सुन्दर बहुरंगे भावपूर्ण ५२ चित्र। आचार्य श्री विजय यशोदेवसूरि द्वारा भगवान महावीर का चित्र संपुट प्रकाशित किया गया था जो अत्यधिक लोकप्रिय हुआ है तथा कुछ अन्य सचित्र प्रकाशन भी हुए हैं। परन्तु इस प्रकार का सुव्यवस्थित सचित्र तीर्थकर चरित्र, चित्र एवं वृत्त दोनों का सामंजस्य करने वाला, यह प्रथम प्रयास कहा जा सकता है जो अपने आप में एक विशेषता है। २. तीर्थंकर चरित्र लेखन में हमने श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों परम्पराओं के चरित्र ग्रन्थों का अनुशीलन किया है तथा जहाँ से उपयोगी, प्रेरक और निर्विवाद प्रसंग लगा उसे लिया भी है। ३. तीर्थंकरों के जीवन सम्बन्धी अनेक ज्ञातव्य रोचक तथ्यों के विषय में जन-साधारण की जिज्ञासा समाधान खोजती रहती है, परन्तु कभी समाधान मिलता है और कभी नहीं मिलता। हमने उक्त ग्रन्थों के आधार पर संकलित कर समाधान की दृष्टि से परिशिष्ट दिये हैं जो अपने आप में ज्ञानवर्द्धक तो हैं ही, काफी रोचक भी हैं। ४. हिन्दी के साथ ही इसका अंग्रेजी अनुवाद हजारों हिन्दीतर भाषी जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी होगा और सुदूर विदेशों में बसे हजारों जैन अपने आराध्य देवों के पावन चरित्र से परिचित होंगे। __इस प्रकार प्रस्तुत तीर्थंकर चरित्र अपने आप में अनेक विशेषताएँ सँजोये सभी के लिए उपयोगी होगा ऐसा दृढ़ विश्वास है। तीर्थंकर चरित्र के सम्पादन में, आधारभूत ग्रन्थों के साथ ही उ. भा. प्रवर्तक गुरुदेव श्री भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. की विशेष प्रेरणा तथा उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म. का मार्गदर्शन एवं उनके महत्त्वपूर्ण विभिन्न आलेख एवं संग्रह भी उपयोगी बने हैं। मेरे निकट सहयोगी बन्धु श्री सुरेन्द्र जी बोथरा ने अंग्रेजी संस्करण तैयार करके इसकी उपयोगिता में चार चाँद लगा दिये हैं। मैं सभी के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। पाठकों से आशा करता हूँ कि वे इसका अधिकाधिक उपयोग कर सकेंगे। -श्रीचन्द सुराना 'सरस लक्ष्मी पुष्पमाला ( ८ ) विमल अनन्त धर्म शान्ति कुन्थु अर Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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