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जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय लाडूनँ मनुष्य को संस्कार प्रदान करने वाला ऐसा विद्या स्थल है जो श्रेष्ठ साधको की साधना स्थली है, जहाँ अहिंसा व जीवन विज्ञान जैन दर्शन में पत्राचार से एम.ए. करने की व्यवस्था हैं। वाईस चांसलर समणी डॉ. मंगल प्रज्ञा जी प्रेक्षाध्यान पत्रिका संपादिका समणी मल्ली प्रज्ञा जी निर्देशिका समणी जी, समणी डॉ. कुसुम प्रज्ञा जी, समणी डॉ. स्थित प्रज्ञा जी, समणी डॉ. चैतन्य प्रज्ञा जी, समणी परम प्रज्ञा जी, आदि व्यक्ताव्यक्त समणी वृंद प्रणम्य हैं। डॉ. भट्टाचार्य सर, डॉ. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, डॉ. बी.आर. दुगड़, डॉ. गौड़ सर, डॉ. संजीव गुप्ता, डॉ. भास्कर सर, डॉ. जिनेन्द्र जैन, जैन विद्या पुरस्कार से पुरस्कृत सुश्री वीणा जैन, मुमुक्षु डॉ. सुश्री शांता जैन का आशीष इस विद्या यज्ञ में काम आया।
पूज्य स्वर्गीय बालचंद जी नाहर (ससुर) व स्व. माँ साहब के व्यक्तित्व से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष अप्रत्याशित रूप से प्रेरणा मिलती रही है। डॉ. साहब के भ्रातृवृंद स्वर्गीय रतनलाल जी की सहृदयता मुझ पर बरसती रही। आदरणीय मदनलाल जी, तेजराज जी (बी.ई.)की स्नेह वृष्टि मेरे पथ का पाथेय रही। सभी जेठानियाँ मेरे उत्साह में प्रेरक रही। नंदोई सा. मुकुंदचंद जी गटागट, सौ.ताराबाई सा, अन्य नंदोई सा व बाई सा व पूरे परिवार के सदस्यों की प्रेरणा से मैं सिंचित होती रही। नाना जी सिद्धकरण जी वैद्य, सौ. रंचना चन्द्र प्रकाश वैद्य की सहृदयता से भी रोमांचित हूँ।
पूज्य पिता स्वर्गीय जोहारमल जी डाकलिया बचपन में छोटी-छोटी कहानियों से संस्कारित करने की कोशिश करते रहे। ममतामयी माँ श्रीमती सुशीला जैन के आँचल की छाया, महत्वाकांक्षी, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उत्साही रहने का संदेश देने वाली की अनाविल व निर्द्वन्द्व आशीष काम आ रही है, क्योंकि वे उसी का अंश है। भाई सुशील का समर्पण, पुरूषार्थी सुधीर व सुरेन्द्र, भाभी सरोज, भतीजे चिंरजीव, सुशांत व भतीजी सहपरिवार का जिज्ञासु मन हमेशा अपनी उपस्थिति का एहसास कराते रहे हैं, जिसे मैं कभी भूल नहीं सकती।
मेरे पति डॉ. नंदकुमार नाहर से मैं कभी उऋण नहीं हो सकती, पग-पग पर उनका अवलम्ब मेरी मानसिक दशा के उत्थान का कारण रहा है। मैं उनकी जितनी भी प्रशंसा करूं, उतना ही कम है। पुत्र स्वप्निल, पुत्र केतन व पौत्र चैतन्य