Book Title: Request To Indian People From Vegetarians Of World
Author(s): Young Indian Vegetarians
Publisher: Young Indian Vegetarians

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Page 14
________________ बौद्ध धर्म की महायान धारा में पालन पोषण होने के कारण मैं समझता हूँ कि विश्वशांति के लिए प्यार और स्नेह ही नैतिक तंत है : स्नेह क्या है, पहले मैं इसे स्पष्ट करना चाहूगां. जब कभी आप किसी गरीब व्यक्ति के प्रति दया या सहानुभूती प्रगट करते है तो आप इसीलिए सहानभूति, प्रगट करते है कि वह गरीब है, आपका स्नेह स्वार्थ परक समझ पर आधारित है. दूसरी तरफ, आपकी पत्नी, आपके पति, आपके बच्चों या किसी निकटस्थ मित्र के प्रति आपका प्यार समान्यतया उनके प्रति आपके लगाव पर ही आधारित होता है। जब आपके इस लगाव में तब्दीली आती है तो परिणामस्वरूप आपकी दया भावना भी बदलती है; यहां तक कि यह लुप्त भी हो सकती है। यह वास्तविक प्यार नहीं है। सही प्यार लगाव पर नहीं बल्कि स्वार्थ पर आधारित होता है। इस स्थिति में आपका स्नेह सरल मानवीय आधार पर तब तक दुख दर्द के लिए उदभुत होता रहेगा जब तक कि प्राणिमात्र दुख दर्द झेलते रहेंगे. यही वह स्नेह है जिसे हमें स्वयं में उत्पन्न करना है। और एक निर्धारित सीमा से अनन्त तक इसे विकसीत भी करना है सभी सचेतन प्राणियों के लिए भेदभाव रहित, सतत् और अपार स्नेह वास्तव में वह सहज प्यार नहीं है जो व्यक्ति का अपने मित्रों व परिवार के प्रति होता है, जिसमें कि अज्ञानता, इच्छा और लगाव का जुडाव रहता है. हमें उस प्यार का प्रतिपादन करने है जो अपार है और जिसे हम अपने शत्रु के प्रति भी प्रकट कर सकते हैं जिसने हमें तकलीफ तक पहुंचाई हो. स्नेह का मुलाधार यही है कि हम में से हरेक दुख तकलीकों से दूर रहकर खुशहाली प्राप्त करना चाहता है. बदले में, यह "अहं" की मान्य भावना पर ही आधारित है जो खुशहाली के लिए सार्वभौमिक ललक को दर्शाती है। निश्चित ही, सभी प्राणिमात्र इसी प्रकार की आकांक्षाओं सहित पैदा हुए हैं और इन आकांक्षाओं की पूर्ति करने का अधिकार उन्हें मिलना चाहिए. जब मै स्वयं की तुलना दूसरे लोगों, जो कि अनगिनत है, से करता हूँ तो मैं पाता हू कि दूसरे लोग मुझसे अधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि मैं अकेला हूँ जबकि वे बड़ी तादाद में हैं इसके अलावा, तिब्बतीय बौद्ध परंपरा हमें यह सिखाती है कि हम सभी सचेतन प्राणियो को अपनी प्यारी मां की तरह देखें और उन्हें प्यार करते हुए अपनी कृतज्ञता प्रकट करें. क्योंकि बौद्ध मतानुसार, हमारे कई जन्म और पुनर्जन्म हुए है और यह मान जा सकता है कभी न कभी प्रत्येक प्राणि हमारा जनक रहा ही होगा. इस तरह सभी प्राणी संसार में पारिवारिक संबंधों के सूत्र में बंधे हैं। कोई धर्म पर विश्वास करे या न करे, लेकिन ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो प्यार और स्नेह का कायल न हो हम पैदा होने की घडी से ही अपने माता - पिता की दया व देखरेख में पलते हैं; जीवन के उत्तरार्ध मैं जब हमें मुसीबतों व बुढापे का सामना करना होता है. हम पुनः दुसरों की सदाशयता पर ही निर्भर रहते हैं. यदि जीवन के प्रारंभिक और अंतिम काल में हमें दूसरों की सदासयता पर ही निर्भर रहना है तो क्यों न हम उस बीच के काल में दूसरों के साथ प्रेम से पेश आये ?

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