Book Title: Ratnatraya Part 02 Author(s): Surendra Varni Publisher: Surendra Varni View full book textPage 7
________________ जितने भी विकारीभाव हैं, वे सब मुझसे भिन्न हैं। कितनी सुन्दर बात कही है आचार्य महाराज ने | हमारे घर में वैभाविक परिणति का चार घुसा हुआ है, फिर भी उस निकालन का हमारा भाव नहीं होता, यह कितने आश्चर्य की बात है। हमें इन विकारी भावों को चोर समझकर निकालने का प्रयास करना चाहिए। शुद्धात्मा की साधना-आराधना करना ही सुखी होने का एक मात्र उपाय है । “समयसार" में आचार्य भगवन् ने लिखा है "एदम्हि रदो णिच्चं संतुट्ठो होहि णिच्चमेदम्हि एदण होहि तित्तो होहदि तुह उत्तमं सोक्खं” ||206 || हे भव्य जीवो! यदि तुम उत्तम सुख चाहते हो तो एक ही उपाय है, कि सदैव इस समयसार स्वरूप शुद्धात्मा में ही रति करो, इसी में संतुष्ट रहो और बस एक इसी में सदा तृप्त रहो, तुम्हें अवश्य उत्तम सुख की प्राप्ति होगी। वर्तमान समय का सही उपयोग ही भविष्य का उज्ज्वल बनाता है। अतः पूज्य गुरुवरों की इस देशना को ध्यान में रखत हुए कि संसार में रत्नत्रय धर्म ही शरण है, हम सबको चाहिए कि उस शरण का प्राप्त हो जायें। समय के रहते जिसन समय अर्थात् शरीर स भिन्न आत्मा को समझकर रत्नत्रय को धारण कर लिया वही बुद्धिमान है और वह आगामी काल में मुक्ति को प्राप्त करेगा | वर्णी जी द्वारा लिख गये इस रत्नत्रय ग्रन्थ के प्रथम भाग में सम्यग्दर्शन एवं सोलह कारण भावनाओं का, द्वितीय भाग में दशलक्षण धर्म एवं सम्यग्ज्ञान का तथा तृतीय भाग में बारह भावनाओं एवं सम्यक्चारित्र का वर्णन 1008 रोचक एवं शिक्षाप्रद कहानियों के माध्यम से किया गया है। __ श्री दिगम्बर जैन मंदिर, शकरपुर, दिल्ली में चातुर्मास के दौरान नित्य प्रति नए-नए 60 विधानां का लगातार महाआयाजन हुआ। परम पूज्य viPage Navigation
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