Book Title: Ranbhumish Vansh Prakash
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ September-2003 45 राजाओ पण असंख्य थई गया होवाथी क्यांक नाम-पाठ व. मां परावृत्ति थई जाय तो विद्वानोए व्यामोह न करवो एम जणाव्युं छे. आ प्रतिनुं लेखन सं. १९५०ना बीजा आषाढ मासना कृष्णपक्षनी सातमे-गुरुवारे अजमेर-दुर्गमां मुनि मोहनविजयजीए करेल छे तेवू प्रतिनी प्रान्ते लखेल पुष्पिकाथी जणाय छे. प्रति उदयपुरना हाथीपोळ-सराय भंडारनी छे. तेमां कुल पत्रो-३ आखा तेमज एक अडधुं-एम चार छे. अक्षरो सुन्दर तथा स्वच्छ छे. बेत्रण स्थळे रहेली नानकडी त्रुटिने बाद करतां लखाण शुद्ध छे. आ प्रतिनी जेरोक्स नकल पू.मुनि श्रीधुरन्धरविजयजी म. द्वारा सांपडेल छे. ॥ अथ श्रीराणभूमीशवंशप्रकाशः ।। ॥ अहम् ॥ जयति विजयलक्ष्मीवासवेस्मा(वेश्मा)भिरामः प्रथितविपुलकीर्तिस्तेजसांराशिरूप: । जलधिरिव विशालश्चारुभूपालरत्नप्रभवभुवनसेव्यो राणभूमीशवंशः ॥१|| इह महति महीयानन्वयेऽभूत् स भूमान् विदितसकलविद्यो बप्पनामाऽनवद्यः । । । अलभत जगदीशादेकलिङ्गाद् वरं यः प्रतिदिनमतिभक्त्या शुद्धसाम्राज्यसिद्धेः ॥२॥ तदनु दनुजहर्ता भूमिभर्ता गुहोऽभूद् १ गुहिल इति नरेशो २ जाग्रदुग्रप्रभावः ॥ अजनि जनितपुण्य: पुण्यनैपुण्यशाली तदनु बहुमहोमिर्भोजभूपो३ऽशुमाली ॥३॥ विशदसुकृतशीलः शीलदेवो मनस्वी ४ तदनु मनुजराजो राजराजोपमोऽभूत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17