Book Title: Puna Me15 Din Bapu Ke Sath
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 5
________________ 3rd Proof Dt. 19-7-2018 -58 महासैनिक. प्रातः अपने घर लौटते हुए मेरे अंतर्मन से शब्द निकल पड़े थे :"कमाल की योग-निद्रा : "रात दो बजे सोना, चार बजे उठ जाना।" शायद आहार-जय, आसनजय के बाद यह निद्रा-जय भी उन्होंने अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक श्री रायचंदभाई से सीखकर सिद्ध कर लिया था, यह मैंने गहन चिंतन के बाद बहुत वर्षों के पश्चात् समझा था। क्या विरल योगी थे बापू भी ! निद्राजयी, प्रवृत्तिकार्यजयी, कर्मयोगी, निसर्गोपचार-प्रयोगी, प्रसन्न विनोदी, बाल-प्रेमी...क्या क्या कहें ? क्या क्या लिखें? ऐसे समग्र योगी का तो निकट-निवासी को ही पता चले ! हम बड़े धन्य थे ऐसे निकट-निवासी एक रातभर के भी बनने पर ! अकल-कला खेलत नर ज्ञानी, नर योगीm गरीबी दूर करने स्वदेशी, कताई और खादी बापू-निश्रा का पाँचवा दिन भी फिर कोई नया सत्य उजागर करनेवाला था । उस दिन भी मुझे रात को ही अपना फर्ज़ अदा करना था। शायद रविवार का दिन था । सायं-प्रार्थना में बड़ी भीड़ उमड़ी थी। हमारे विद्यालय से भी कुछ और सहपाठी छात्र-छात्राएँ प्रार्थना समय के हरिजन-फंड एकत्र करने हेतु पधारे थे । मित्र प्रताप दिन भर का फर्ज़ अदा कर प्रार्थना उपरान्त अपने घर साइकिल पर लौट जानेवाला था। इधर आये हुए सभी छात्र-छात्राओं ने भी हमारी भाँति अत्यधिक फंड एकत्रित किया था और बापू के चरणों में वह रखकर उस निमित्त से दर्शन का लाभ वे चुकना नहीं चाहते थे। उनमें से दो छात्राएँ बापू के चरणों तक पहुंच गईं- रंजन और पुष्पा । दान-पत्र छलाछल-लबालब देखकर प्रसन्न बापू ने पूछा "शुं नाम छे तारे, दिकरा ?" (क्या नाम है तुम्हारा, बिटिया ?) . "पुष्पा, पुष्पा भगत !" "ताएं?: "रंजन"। "आज फंड़ तो घणुं भेगुं कर्यु, पण रोज गरीबोनुं कोई सेवाकार्य पण करे छ के ?" ("आज फंड तो बहुत एकत्रित किया, परंतु रोज़ गरीबों का कोई सेवा-कार्य भी करती हो क्या ?) __ "हा बापू । स्कूल जतां गणपतिना मंदिर पासे, बेठेला गरीब भिखारीने रोज एक पैसो नाखती जाउं छु" (हाँ बापू । स्कूल जाते समय गणपति मंदिर के पास बैठे हुए गरीब भिखारी को रोज एक पैसा देकर जाती हूँ।) "ए तो सारं, पण तेथी तेनी गरीबी सदा माटे दूर थई जशे के ?" (वह तो अच्छा है, परंतु उससे उसकी गरीबी सदा के लिये दूर हो जायगी क्या ?") छात्रा सोच में पड़ गई। (58)

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