Book Title: Puna Me15 Din Bapu Ke Sath
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 10
________________ 3rd Proof Dt. 19-7-2018- 63 • महासैनिक • में शर्त का संपूर्ण पालन नहीं हुआ है। परंतु मैं इस माह पूना जाने की आशा रखता हूँ। मेरी उत्कट (तीव्र) ईच्छा है कि अगर धनिक दर्दी आयें तो वे उनकी संपूर्ण क्षमता अनुसार फीस चुकायें। और फिर भी गरीबों के वॉर्ड में उनके समान ही रहें। मैं जानता हूँ कि इस प्रकार करने से अब से वे ज़्यादा लाभ पा सकेंगे। जो लोग इस शर्त का पालन करना नहीं चाहते हों, उन्हें चिकित्सालय पर जाने की तकलीफ़ उठाने की ज़रुरत नहीं है। यह नियम आवश्यक है । । "इसके उपरान्त उनकी बीमारी के उपचार से गरीब मरीज़ों को भी यह सीखने मिलेगा कि तंदुरस्त जीवन किस प्रकार जीया जा सकता है। आज तो एक सामान्य मान्यता है कि आयुर्वेद या अॅलोपथी से निसर्गोपचार अधिक खर्चीला है। अगर यह सही साबित होता है तो मुझे निष्फलता का स्वीकार करना चाहिए। परंतु मैं मानता हूँ कि इससे विपरित (विरुद्ध) जो है वह सही है और मेरे अनुभव भी उसका समर्थन करते हैं। निसर्गोपचार के चिकित्सक का फर्ज है कि वे केवल शरीर की ही देखभाल न करें, परंतु दर्दी की आत्मा की ओर भी ध्यान दें और चिकित्सा करें। आत्मा के लिये सबसे उत्तम नुस्खा ( उपाय ) रामनाम है। आज मैं रामनाम लेने के तरीके (रीतियाँ ) या अर्थ में उतरता नहीं हूँ। मैं मात्र इतना ही कहना चाहता हूँ कि गरीब दर्दी को ज़्यादा दवाई लेने की ज़रुरत नहीं है। कुदरत हमें क्या सीखा रही है उस बात का अज्ञान ही उन्हें अंध बनाता है। अगर पूना का प्रयोग सफल होगा तो डो. दिनशा महेता का निसर्गोपचार विद्यापीठ का स्वप्न साकार होगा ।"* "देश हित के इस महान कार्य में भारत के सच्चे निसर्गोपचार के तबीबों (चिकित्सकों) की मदद बहुत ही जरुरी है उसमें पैसे कमाने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है। गरीबों की सेवा करने के उत्साह से जो भरे हुए (निमग्न / सराबोर ) हैं, वैसे लोगों की ज़रुरत है। डोक्टर (चिकित्सक) के पद के लिए कोई खास ( निश्चित / निर्धारित ) मापदंड (प्रतिमान, अर्हता) नहीं है। जो सच्चा सेवक है, यही सच्चा तबीब, डोक्टर, चिकित्सक है। जिनके पास अनुभव और ज्ञान है और सेवा करने की जिनकी तत्परता है, वे अपनी योग्यता की सूची ( यादी, विगत, विवरण) के साथ लिख सकते हैं। जिनकी योग्यता स्तरीय ( पर्याप्तं धोरण मुताबिक, standard) नहीं होगी उन्हें उत्तर नहीं दिया जाएगा ।" 1 - महात्मा गांधी : 'विश्वभारती' ग्रंथ का लेखानुवाद | बापू के गरीबों और निसर्गोपचार निष्ठा विषयक इन स्पष्ट विचारों का यह अनुवाद करते हुए अंत में अनुवादिका कवयित्री सुश्री कालिन्दी परीख ( अमरेली-सौराष्ट्र) लिखती है कि : "इस प्रकार यहाँ देखा जा सकता है कि पू. बापू के हृदय में गरीब मरीज़ों की कितनी चिंता और दरकार थे। फिर अनावश्यक एवं खर्चीली डोक्टरी चिकित्सा के स्थान पर निसर्गोपचार तो सभी के बस की बात है, सभी के बस होना चाहिए । (63) बरसों पूर्व की बापू की 'निसर्गोपचार विद्यापीठ' की यह आर्ष- भावना अब 2014-16 में डो. दिनशा महेता के ही उसी पूना के Nature Cure के स्थान पर साकार हो रही है।

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