Book Title: Puna Me15 Din Bapu Ke Sath
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 4
________________ 3rd Proof Dt. 19-7-2018 -57 • महासैनिक . (कल तुमने क्या भजन जोड़ दिया और बापू को भी हंसा दिया !) दो दिन से हम दोनों मित्र निरीक्षण कर रहे थे कि इतनी प्रवृत्तियाँ और राष्ट्र के स्वातंत्र्य-आंदोलन की जिम्मेदारियों के होते हुए भी बापू बीच बीच में कैसा विनोद कर लेते थे । इसे लक्ष्यकर डाक्टर साहब को हमने उत्तर दिया : "दिनशाजी ! बापूना विनोदे ज अमने आवी मजाक सुझाड़ी...।" और हम तीनों बापू के कमरे पर पहुंचते पहुंचते दिनशाजी की मीठी लताड़ सुनते गये : "भारे शरारती...!" फिर वे और हम सब चुप हो गये । बापू को प्रणाम कर कमरे के दरवाजे पर जाउं उतने में तो दिनशाजी ने बापू से कहा: "बापू ! आपनो (णो) आ भजनिक वोलन्टीयर आवी गयो छे!" बापूने हँसकर पूछा : "बेटा! शुं नाम छे तारुं? जवाब दिया : "प्रताप।" दिनशा ने भी मज़ाक में कहा "महाराणा प्रताप !" बापू फिर हँस पड़े। पूछा "जंग कोनी सामे करशो ?" (युद्ध किसके सामने करेंगे ?) मैंने विनम्रता से उत्तर दिया : "अंग्रेजो सामे, देशनी गुलामी सामे..." "साएं, पण अहिंसाथी" (अच्छा, परंतु अहिंसापूर्वक)। बापू लिखने बैठ गये और यह बड़ी युद्ध-शिक्षा लेकर हम अपने अपने दिनभर के कर्तव्यों में लग गये । उस दिन लगातार तांता लगा रहा अनेक नेताओं का - सरदार, जवाहरलालजी, मौलाना, इत्यादि । सभी के दर्शन का हमें मुफ़्त में लाभ मिल जाता था, बापू गांधी के स्वयंसेवक जो हम थे । उन सब के और सायं प्रार्थना करते बापू के भी अपने 'डिब्बा केमरे' में उस दिन कुछ फॉटो खींचते हुए हम घर लौटे । हरिजन-फंड तो एकत्रित कर ही दिया था। रात दो बजे सोना, चार बजे उठ जाना दूसरे-चौथे दिन मेरी ड्युटी रात की होने पर सायं-प्रार्थना के समय ही मैं जुड़ गया । सहपाठी मित्र प्रताप तब अपने घर गया। उस रात बापू के कमरे के उनके सूती शयन-पलंग को उठाकर उसकी जगह बदलने का हमें मौका मिला । लोगों के जाने के बाद भी उस पर सोने के बजाय तकिये के सहारे बैठे बैठे देरी तक बापू कुछ लिखते रहे । शायद 'हरिजन बंधु' के लेख थे वे। जब वे सोने के लिए लेटे तब रात के दो बज गये थे ! और जब सोकर उठे तब, मैंने बराबर नोट किया था, ठीक चार बजे थे ! न कोई घंटी, न कोई अॅलर्म !! न कोई थकान, न कोई सर्दी का दबाव !! वही चित्त-प्रसन्नता, वही मुस्कान....! अपना प्रातः कर्म निपटाना, प्रार्थना में मौन बैठ जाना, चरखा कातना सब कार्य सूर्यवत् नियमित गति से चलता रहा और मैं दंग होकर सबु चुपचाप देखता रहा । उनकी तो कमाल की योगनिद्रा थी! (57)

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