Book Title: Pravrajya Yog Vidhi
Author(s): Maniprabhsagar
Publisher: Ratanmala Prakashan

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Page 215
________________ चैत्यवंदन आदिमं पृथिवीनाथ, मादिमं निष्परिग्रहम्।। आदिमं तीर्थनाथं च, ऋषभस्वामिनं स्तुमः। सुवर्णवर्णं गजराजगामिन। प्रलम्बबाहुं सुविशाललोचनम्। नरामरेन्द्रैः स्तुतपादपंकजम्। नमामि भक्त्या ऋषभं जिनोत्तमम्।। अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः। आचार्याः जिनशासनोन्नतिकराः पूज्याः उपाध्यायकाः। श्री सिद्धान्तसुपाठका मुनिवराः रत्नत्रयाराधकाः। पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम्॥ किंचि. णमुत्थुणं. अरिहंतचेइयाणं. अनत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें नमोऽर्हत. यदंघ्रि नमनादेव, देहिनः संति सस्थिताः तस्मै नमोस्तु वीराय, सर्वविघ्नविघातिने1॥ लोगस्स. सव्वलोए, अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें सुरपतिनतचरणयुगान्, नाभेयजिनादिजिनपतीन्नौमि। यद्वचनपालनपराः, जलांजलिं ददतु दुःखेभ्यः॥2॥ पुक्खरवदी. सुअस्स. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर स्तुति बोलें वदन्ति वृन्दारूगणाग्रतो जिनाः। सदर्थतो यद्रचयंति सूत्रतः। गणाधिपास्तीर्थसमर्थनक्षणे, तदंगिनामस्तु मतं विमुक्तये॥3॥ सिद्धाणं बुद्धाणं. वैयावच्च. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का कार्यात्सर्ग कर स्तुति बोलें नमोऽर्हत्. शक्रः सुरासुरवरैः सह देवताभिः। सर्वज्ञशासनसुखाय समुद्यताभिः। श्री वर्धमानजिनदत्तमतप्रवृत्तान्, भव्यान् जिनानवतु मंगलेभ्यः।4।। नीचे बैठकर बायां घुटना उँचा कर णमुत्थुणं. बोलकर खडे होकर बोलेश्री शान्तिनाथ देवाधिदेव आराधनार्थ करेमि काउसग्गं वंदणवत्तियाए. अन्नत्थ. बोलकर एक नवकार का काउसग्ग कर पार कर नमोऽर्हत् कह कर स्तुति बोलें रोगशोकादिभिर्दोषै-रजिताय जितारये। नमः श्रीशान्तयै तस्मै, विहितानन्तशक्तये॥5॥ 208 / योग विधि

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